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जुलाई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बिजौलिया: जमीनी हालात

डायरी बिजौलिया: जमीनी हालात सरिता अरोड़ा हम बूंदी जिले के तालेडा विकास खण्ड के डाबी क्षेत्र में एक समूह को अकादमिक सहयोग देने के सिलसिले में जाते रहते थे। इसके लिए पहले बूंदी से आना-जाना रहता था। फिर बिजौलिया में रुकने लगे। यह क्रम विगत दो-तीन वर्ष चलता रहा। इस दौरान हमने बिजौलिया के इर्द-गिर्द के जमीनी हालात देखने और वहां की समस्याओं को समझने की कोशिश की। बिजौलिया में महान नेता विजयसिंह पथिक की अगुवाई में स्वातंत्रय-संघर्ष के दौरान ख्यात किसान-आन्दोलन हुआ था। हमारी यह भी उत्सुकता थी कि अपने निकट इतिहास के प्रति लोगों के नजरिये को जाना जाये। वर्तमान में डाबी की तरह बिजौलिया भी खनन-क्षेत्र है। हमने पता करने की कोशिश की कि इससे स्थानीय लोगों की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जिंदगी पर क्या फर्क पडा है। साथ ही वे पारिस्थिकीय परिवर्तन को कैसे देख रहे हैं। यहां फील्ड डायरी के कुछ अंश प्रस्तुत हैंः  20.01.2011  मण्डौल बांध बूंदी रोड पर स्थित है। यह करीबन एक किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यह अरावली की उपत्यका में स्थित एक खूबसूरत जगह है। बांध का परास क्षेत्र पहाडियों से विपरीत दिशा

शिक्षा का अधिकार: एक आकलन

शिक्षा का अधिकार: एक आकलन अम्बरीश राय शिक्षा का अधिकार मंच (RTE Forum)शिक्षा में प्रणालीगत सुधार की नीयत से शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय करीबन 10 हजार संस्थाओं-संगठनों सामूहिक राष्ट्रीय नेटवर्क हैं- जिसमें शिक्षकों और शिक्षाविदों के संगठन भी शामिल हैं। भारत की संघीय संरचना के मद्देनजर राज्यों के मंच साझा अभियान की दिशा में मिलकर राष्ट्रीय मंच के तौर पर कार्य करते हैं। देश के 14 राज्यों में राज्य स्तर के मंच सक्रिय हैं जिनमें दिल्ली, उत्तराखंड, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, उडीसा, आंध प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और पण्डिचेरी शामिल हैं। इनके अतिरिक्त आसाम, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के संगठनों /संस्थाओ के राष्ट्रीय फोरम से अनौपचारिक रिश्ते हैं। राष्ट्रीय मंच का जोर शिक्षा के अधिकार कानून के देश भर में प्रभावी क्रियान्वयन को लेकर रहा है। मंच के सदस्यों ने राज्य सरकार के साथ आलोचनात्मक सम्बद्धता स्थापित की है ताकि शिक्षा को एक राजनीतिक एजेन्डा के तौर पर सामने लाया जा सके। साथ ही सामुदायिक सक्रियता और जागरूकता के लिए राज्य स्तर पर सकारा

समान्तर का एक दशक

समान्तर का एक दशक राजाराम भादू  समान्तर ने अपनी विधिवत् शुरूआत से अब तक एक दशक की यात्रा पूरी कर ली है। हालांकि अनौपचारिक रूप से तो समान्तर की सक्रियता का समय और भी ज्यादा है। इस अवसर पर लगता है कि हम अपने कामों का एक संक्षिप्त विवरण आपके समक्ष प्रस्तुत करें।  समान्तर ने अपनी सक्रियता को संस्कृति के इर्द-गिर्द रखा है जो वैसे तो अपने अर्थ में बहुत व्यापक है और बहुत सारी चीजों को अपने में समाहित किये हुए है। विगत दशकों-से देश ही नहीं बल्कि दुनिया एक गहरे सांस्कृतिक संक्रमण से गुजर रही है। ऐसे में सबसे ज्यादा बहसें और मत भिन्नता भी इसी क्षेत्र में है। वर्चस्व की संस्कृति और इसके विरुद्ध प्रतिरोध के प्रश्न इस दौर में  तीखे हुए है। हम इसमें क्या कर रहे हैं? हमारा मानना है कि समाज जिस तरह कई समुदायों की सम्मिलित संरचना है जिसमें एक परंपरा नहीं बल्कि कई परंपराएं हैं, उसी तरह कई संस्कृतियां भी हैं। ऐसा माना जाता है कि मुख्यधारा की संस्कृति ही वर्चस्व की संस्कृति है। हमारा जोर आधुनिक संस्कृति पर है जिसका ताना बाना समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और मानवीय गरिमा जैसे जनतांत्रि