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अमृता शेरगिल के कुछ पत्र

अमृता शेरगिल ( 1913-1941 ) भारतीय मूल की चित्रकार थीं। उनका जन्म 30 जनवरी, 1913 को बुडापेस्ट, हंगरी में हुआ। कला में आरंभिक रुचि के चलते उन्होंने यूरोपीय कला का गहन अध्ययन किया और इस सिलसिले में पेरिस रहीं। यहीं उन्हें लगा कि उन्हें अपनी सांस्कृतिक जडों से जुडना चाहिए। इस क्रम में उन्होंने भारत आकर यहां की पारंपरिक और तत्कालीन कला का सूक्ष्म- अवलोकन व अध्ययन किया। उनका महत्वपूर्ण सृजन उसके बाद ही सामने आया। उन्हें बीसवीं सदी के अवांगार्द कला आन्दोलन की अहम् स्त्री- कलाकार माना जाता है। साथ ही, वे आधुनिक कला के अग्रणी चित्रकारों में शुमार हैं। यहाँ उनके कुछ पत्र प्रस्तुत किये जा रहे हैं जिनमें उनकी अन्वेषी कला- दृष्टि और मौलिक सृजनशीलता के मूल उत्स परिलक्षित होते हैं। अमृता का अल्पायु में ही 5 दिसम्बर, 1941 को लाहौर में निधन हो गया।                     प्रस्तुति- राजाराम भादू                     अमृता शेरगिल के कुछ पत्र मां को : बेरोस, हंगरी, १५ अगस्त, १९३४ मैं कुछ सैरे बना रही हूं। मैं का...

पंकज सिंह की कुछ कविताएँ

पिछले दिनों मैं ने पंकज सिंह की कविताओं पर लिखा। वे मेरे प्रिय कवियों में रहे हैं। अपने समकालीनों में वे कहीं अधिक यथार्थवादी और काव्यात्मक रहे हैं। एक राजनीतिक कवि के रूप में उनकी कविताएँ ज्यादा टिकाऊ और प्रासंगिक ठहरती हैं। ऐसा शायद इसलिए है कि वे प्रतिकूल समय में भी सैद्धांतिक निष्ठा और अपने संकल्प से शक्ति अर्जित करते हैं। उनकी कविताओं में वैयक्तिक अनुभूतियाँ और व्यापक संलग्नता ऐकमेक है। इसीलिए उनकी कविताओं के निहितार्थ और प्रभाविता नये सिरे से आलोकित हैं। उनके तीन प्रकाशित संकलनों से किन्हीं कविताओं का चयन आसान नहीं है। निश्चय ही, प्रस्तुत कविताओं में मेरी पसंदगी और अन्यान्य आग्रह रहे हैं।                     - राजाराम भादू १. हम घिरे हैं गिरे नहीं वह कौन है, मेधा? मोमबत्ती ढूंढती हुई अंधकार में अपनी ही प्रति- छाया सी किसी गोपनीय शाप का दूसरा सिरा थामे खुद को भरसक बचाना है खीझ से उदासी के जहर से रहने दो, रहने दो अभी, मैं कहता हूँ अंधेरे में व्यर्थ की टकराहटों का, चोट खाने का अंदेशा है रहने दो फिलहाल रहने दो हमें इंतजार की ताकत ...