डायरी अबोली की डायरी- जुवि शर्मा किसी ने कहा है, जो अदृश्य को देख सकते हैं वही उसे संभव भी बना सकते हैं। जुवि ने अपनी डायरी में अवसाद की दारुण यातना को अभिव्यक्त किया है। सृजन के लिए अवसाद का पुनरावलोकन भी कम विषादकारी नहीं रहा होगा। सृजन ने उनके आत्मसंघर्ष में अन्त: शक्ति का काम किया है। इस क्रम में जुवि ने अपने अस्तित्व की तलाश भी की है। हिन्दी की डायरी विधा में एक और नवोन्मेष। - राजाराम भादू 27 जून 1993 सेवंथ ' बी ' ढूंढ़ते ढूंढते गीला स्कर्ट पानी टपकाता और गीले चमड़े के जूते पच - पच करते चरमराने लगे थे , रिपटने के डर से मैं बेबी स्टेप्स चल रही थी । क्लास मिलते ही किताबें निकालकर , बैग पंखे के नीचे सुखने छोड़ दिया और फटाफट अपनी मेज़ चुन ली । बारिश से व्यथा यह थी कि कपड़ें बचाए या किताबें ; वो भी जब किताबें दो साल पुरानी जुगाड़ की हुई हो , मैंने किताबों को प्राथमिकता दी । माँ , " बरसाती जूते खरीदने पड़ेंगे , चमड़े के जूते भीग भीग कर सड़ जाएंगे और इनमें पानी भर जाता है , फिर इनकी चु - चु से मुझे शर्म आती हैं " ...
संस्कृति केंद्रित पत्रिका