प्रो. आशा कौशिक एक स्त्रीवादी विदुषी के साथ समर्थ एक्टिविस्ट हैं। वे राजस्थान विश्वविद्यालय के विभिन्न निकायों और राजस्थान विश्वविद्यालय वीमेन एसोसिएशन (RUWA) में समान रूप से सक्रिय रही हैं। उन्होंने राज्य की महिला नीति बनाने में अहम भूमिका निभाई है। उनके लेख प्रतिष्ठित अकादमिक पत्रिकाओं में छपे हैं। प्रस्तुत लेख साहित्य और संस्कृति के आवयविक संबंध को रेखांकित करता है। साहित्यिक चेतना सामाजिक चेतना का ऐसा वहै, जो स्वनिर्धारित, स्वायत्त कलेवर रखते हुए भी बद्धमूल है। सामाजिक संबंधों के परिवेश की असीमित असंगतियां, सभावनाएं साहित्य सृजन के लिएउर्वम है, चुनौतीपूर्ण परिदृश्य भी। इसका यह तात्पर्य कतई नहीं है कि सामाजिक विश्लेषण की सहायक विध्या है। कला की अन्त:विहित सम्पूर्णता एवं कल्पनाशील विशिष्टता उसे एक मानक का दर्जा प्रदान करती है। साहित्यकार की अनुभूति में प्रचलित सामाजिक मूल्यों, मानकों, संबंध संरचनाओं की व्याख्या, पुनव्य्याख्या मे संवेदनशील-परख की अनूठी क्षमता होती है। यह क्षमलता सामाजिक सरोकारों से संलग्नता में निखरती है। जब साहित्य, मूर्त संदर्भी में मूर्त व्यक्तियों की आशा-निराशा, आ...
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