भूमंलीकरण और आर्थिक उदारवादी नीतियों ने गाँव, कृषि और पारंपरिक उद्यमों का भयावह हाशियाकरण किया है। कथाकार ज्ञानचंद बागडी अपनी स्मृतियों के गाँव को प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि अतीत का वह गाँव कोई आदर्श था लेकिन जिस तरह बदलाव आया, वह भी सहज नहीं कहा जा सकता। इसी संदर्भ में ये संस्मरण- लेख मीमांसा में प्रस्तुत किया जा रहा है। मेरा गाँव मेरे लिए दुनिया की सबसे सुंदर जगह है , जहां मेरा बचपन बीता था । गाँव और बचपन की स्मृतियाँ मुझे रोमांचित कर देती हैं । दिल करता है कि उड़कर गाँव पहुंच जाऊं । यही कारण है कि समय निकालकर वहां जाता रहता हूँ । वहां बिताये हुए कुछ ही दिन मुझे पूरे साल के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं । मेरे लिए गाँव का मतलब है प्रकृति का साथ , खेत-खलिहान , जहाँ सुबह आपकी आँख मुर्गे की बांग या किसी पशु के रंभाने से खुले , जहां मोर नाचते हों , झिंगुरों की आवाज सुनी जा सके , रात में एक-एक तारा साफ दिखाई दे , अंधेरे का संगीत और सन्नाटा सुनाई दे , साझी विरासत हो और साझी ही बहन-बेटियां , सहयोग हो , सामाजिकता हो , सादा खाना हो , मोटा पहनावा हो । ऐसा ही तो था मेरा गाँव , सरल औ...
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