पूर्वकथन : लीलाधर मंडलोई ने वर्तमान साहित्य के शताब्दी कविता विशेषांक ( मई- जून,२०००) का संपादन किया था। इसमें शताब्दी की कुछ चुनी हुई कविताओं पर समीक्षात्मक टिप्पणियाँ व लेख हैं जो अलग- अलग लोगों से लिखवाये गये थे। मैं ने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की भेडिया श्रृंखला पर लिखा था। इसे उलटते- पलटते लगा कि यह आज तो और भी मौजूं है। भगतसिंह की जेल में लिखी डायरी- ए मार्टायर्स नोटबुक ( इंडियन बुक क्रानिकल) का हिन्दी अनुवाद आ चुका है- शहीदे- आजम की जेल नोटबुक ( परिकल्पना प्रकाशन, लखनऊ)। इसमें भगतसिंह द्वारा मूल पृष्ठ ३९ में तिरछे लिखी ये पंक्तियां उद्धृत हैं- महान इसलिए महान हैं क्योंकि हम घुटनों पर हैं आओ उठ खडे हों। पंक्तियों के लेखक का नाम नहीं है, बहुत संभव है ये स्वयं भगतसिंह की लिखी हों। सर्वेश्वर की इन कविताओं को पढते हुए मुझे लगता है, ये महानता के विरुद्ध साधारण जनों को उठ खडे होने के लिए आह्वान करती कविताएँ हैं। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपनी काव्य- यात्रा सोच के जिस धरातल से शुरू की थी, बाद में वे लगभग उसके विपरीत छोर पर छोर पर पहुँच गये थे। यहां वे आततायी शक्तियों के प्रतिपक्...
हाशिये के समुदायों पर सामाजिक सांस्कृतिक सामग्री का नितांत अभाव मिलता है। आदिवासी समुदायों पर भारतीय नृतत्वशास्त्र सर्वेक्षण के अन्तर्गत कुछ मोनोग्राफ प्रकाशित हुए हैं। लेकिन ये दशकों पुराने हैं और इन्हें अद्यतन नहीं किया गया है। जबकि अनुसूचित जातियों में कुछ समुदायों ने अपनी ही पहल पर लेखन का प्रयास किया है। ऐसे कुछ दस्तावेजों को सामाजिक अध्येता बद्रीनारायण ने गोविन्द बल्लभ पंत सामाजिक शोध संस्थान, झुंसी, इलाहाबाद के दलित संदर्भ केन्द्र में एकत्रित कराया है। लेकिन ऐसे समुदाय जो आदिवासी व दलित श्रेणियों में भी निचले पायदान पर हैं अथवा इनसे बाहर हैं और जिन्हें प्रायः घूमन्तू- अर्ध घूमन्तू कहकर अभिहित किया जाता है, उनके अतीत व वर्तमान को लेकर प्रामाणिक जानकारियों का लगभग अभाव है। इस दिशा में गंभीर प्रयास कम से कम मेरी जानकारी में तो नहीं हैं। ऐसे में जोधपुर के प्रो. नेमीचंद बोयत के कार्य की व्यापक सराहना होनी चाहिए। इन्होंने हाशिये के समुदायों पर तीन किताबें लिखी हैं: पहली - इतिहास के पन्नों में मेहतर, वाल्मीकि एवं चाण्डाल ; दूसरी - इतिहास के झरोखे में सांसी और तीसरी इतिहास के आइने में ब...