समान्तर का एक दशक
राजाराम भादू
समान्तर ने अपनी विधिवत् शुरूआत से अब तक एक दशक की यात्रा पूरी कर ली है। हालांकि अनौपचारिक रूप से तो समान्तर की सक्रियता का समय और भी ज्यादा है। इस अवसर पर लगता है कि हम अपने कामों का एक संक्षिप्त विवरण आपके समक्ष प्रस्तुत करें।
समान्तर ने अपनी सक्रियता को संस्कृति के इर्द-गिर्द रखा है जो वैसे तो अपने अर्थ में बहुत व्यापक है और बहुत सारी चीजों को अपने में समाहित किये हुए है। विगत दशकों-से देश ही नहीं बल्कि दुनिया एक गहरे सांस्कृतिक संक्रमण से गुजर रही है। ऐसे में सबसे ज्यादा बहसें और मत भिन्नता भी इसी क्षेत्र में है। वर्चस्व की संस्कृति और इसके विरुद्ध प्रतिरोध के प्रश्न इस दौर में तीखे हुए है। हम इसमें क्या कर रहे हैं? हमारा मानना है कि समाज जिस तरह कई समुदायों की सम्मिलित संरचना है जिसमें एक परंपरा नहीं बल्कि कई परंपराएं हैं, उसी तरह कई संस्कृतियां भी हैं। ऐसा माना जाता है कि मुख्यधारा की संस्कृति ही वर्चस्व की संस्कृति है।
हमारा जोर आधुनिक संस्कृति पर है जिसका ताना बाना समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और मानवीय गरिमा जैसे जनतांत्रिक मूल्यों से बुना गया है। इस आधुनिक संस्कृति का आलोचनात्मक विमर्श करते हुए क्षैतिजिक विस्तार किया जाये। दूसरी ओर जो समुदाय इसके हाशिये पर या उसके भी परे हैं उन्हे इसके दायरे में लाया जाये। जाहिर है कि सवाल्टर्न सांस्कृतिक समुदायों का सामाजिक समावेशन और बहुलवादी अवधारणाओं की मदद से ही आधुनिक संस्कृति की मुख्यधारा में लाया जा सकता है। समान्तर की रणनीति यही है कि एक ओर इन समुदायों के बीच काम करते हुए उन अनुभवों को व्यापक मंच पर शेयर किया जाये, दूसरी ओर रेडिकल सांस्कृतिक अवधारणाओं को व्यवहार के धरातल पर उतारा जाये। निश्चय ही यह एक लघु और प्रायोगिक उपक्रम है।
हमारा जोर आधुनिक संस्कृति पर है जिसका ताना बाना समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और मानवीय गरिमा जैसे जनतांत्रिक मूल्यों से बुना गया है। इस आधुनिक संस्कृति का आलोचनात्मक विमर्श करते हुए क्षैतिजिक विस्तार किया जाये। दूसरी ओर जो समुदाय इसके हाशिये पर या उसके भी परे हैं उन्हे इसके दायरे में लाया जाये। जाहिर है कि सवाल्टर्न सांस्कृतिक समुदायों का सामाजिक समावेशन और बहुलवादी अवधारणाओं की मदद से ही आधुनिक संस्कृति की मुख्यधारा में लाया जा सकता है। समान्तर की रणनीति यही है कि एक ओर इन समुदायों के बीच काम करते हुए उन अनुभवों को व्यापक मंच पर शेयर किया जाये, दूसरी ओर रेडिकल सांस्कृतिक अवधारणाओं को व्यवहार के धरातल पर उतारा जाये। निश्चय ही यह एक लघु और प्रायोगिक उपक्रम है।
जमीनी काम के लिए समान्तर ने पूर्वी राजस्थान के भरतपुर और गंगापुर (सवाई माधोपुर) के शहरी क्षेत्रा में अपने फील्ड सेंटर स्थापित कर काम शुरू किया। भरतपुर में जाति और गंगापुर में सम्प्रदाय के आधार पर द्वन्द्व रहे हैं जिनसे वंचित समुदाय ही ज्यादा प्रभावित रहे हैं। भरतपुर के वंचित समुदाय के बच्चों में पढ़ने की संस्कृति को विकसित करने के लिए बाल पुस्तकालय व गतिविधि केन्द्र शुरू किये गये। रूम टू रीड की मदद से शुरू में (दिसम्बर 2004 से जून 2007) ऐसे 10 केन्द्र शुरू किये गये, बाद में (जून 2006-जून 2009) 10 और नये केन्द्र खोलकर इस कार्यक्रम का विस्तार किया गया। सामुदायिक चेतना केन्द्र नाम से कुछ इसी तरह के केन्द्र गंगापुर सिटी की वंचित बस्तियों में संचालित किये गये। राजीव गांधी फाउन्डेशन की मदद से इन केन्द्रों (जनवरी 2006-दिसम्बर 2009) से समुदाय को भी जोडा गया।
इसका एक असर यह हुआ कि बच्चों और उसके अभिभावकों में स्कूली शिक्षा के प्रति सम्मान बना और नयी आकांक्षाए जगीं। हम जानते हैं कि संस्कृति के घेरे में मुख्यतः स्त्रियां रहती हैं, ऐसे में बालिकाओं और किशोरियों की स्थितियों का सहज अनुमान कर सकते हैं जो संस्कृतिकरण की कहीं अधिक जटिल प्रक्रिया से गुजरती हैं। भरतपुर में हमने बालिका व किशोरियों को केन्द्र में रखकर काम शुरू किया। यहां रूम टू रीड के सहयोग से बालिका शिक्षा कार्यक्रम(सितम्बर 2009 - जून 2015) और सर दौराबजी टाटा ट्रस्ट के सहयोग से बालिका सशक्तीकरण परियोजना (अप्रैल 2010-सितम्बर 2013) संचालित की गयीं। इनसे बालिका-किशोरियों की मुखर और आत्मविश्वास से भरी कतार निकलकर आयी। हमें लगा कि इस प्रक्रिया को तार्किक परिणति तक पहुॅचाने के लिए इन्हे व्यावसायिक सामर्थ्य प्रदान करना भी जरूरी है। उनमें ऐसी क्षमताएं विकसित करने का एक प्रयोगात्मक कार्यक्रम (2006) हम चला चुके थे। उसे ही बंगलोर के फाउन्डेशन फोर वोकेशनल ट्रेनिंग एंड रिसर्च संस्थान की मदद से व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण योजना (अक्टूबर 2011-अक्टूबर 2012) के रूप में विस्तार दिया। स्वाभाविक रूप से आर्थिक आत्मनिर्भरता किसी भी स्त्री की वैयक्तिक गरिमा को सुनिश्चित करती है।
प्रारंभिक शिक्षा में हमारे यहां कुछ उल्लेखनीय नवाचार हुए हैं। हम ऐसी सीखों को संस्कृति के परिक्षेत्र में परीक्षित करना चाहते थे। गंगापुर सिटी में चेतनाशाला के नाम से एक प्रायोगिक स्कूल चलाया गया जिसमें भिन्न जाति-धर्म समुदायों के बच्चों के साथ आलोचनात्मक शिक्षण शास्त्र की पद्धतियों को कुछ और प्रयोगों के साथ आजमाया गया। चेतना शाला (अप्रैल 2007-जून 2009) के दो सजों के काम को निरंतर समुदायों और सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की नजर में रखा गया और उनसे लगातार संवाद किया गया। हमारा मानना है कि मुख्यधारा शिक्षा (सरकारी स्कूल) प्रणाली को बेहतर और जबावदेह बनाने की जरूरत है क्योंकि ये अब वस्तुतः गरीबों के स्कूल हैं। मुहिम परियोजना के माध्यम से (अप्रैल 2009-मार्च 2012) हमने गंगापुर सिटी के 10 सरकारी स्कूलों में चेतनाशाला की सीखों और अनुभवों को लागू किया। न्यू एजुकेशन ग्रुप, दिल्ली की मदद से अगले चरण में कस्बे (गंगापुर सिटी) के सभी प्राथमिक-उच्च प्राथमिक स्कूलों को इस परियोजना में सम्मिलित कर लिया। इन स्कूलों से सम्बद्व समुदायों के साथ अन्तक्रिया और संवाद की प्रक्रिया भी निरंतर चलती रही है। साथ ही समुदायों में स्थित आंगनवाडी केन्द्रों पर भी स्कूल पूर्व शिक्षा की प्रक्रियाओं में सहयोग किया जा रहा है।
संस्कृति के मुद्दों को सम्बोधित करने के लिए शोध एक अनिवार्य कार्यवाही है। समान्तर के एजेन्डे में शोध आरंभ से रहा है। बल्कि इसकी शुरूआत ही मेवात पर किये गये एक सांस्कृतिक अध्ययन (2003-2005) से हुई। अमन, दिल्ली के साथ मिलकर किये गये इस अध्ययन की प्रस्तुतियां जयपुर, दिल्ली और हैदराबाद में की गयीं। सबसे अहम् यह है कि यह शोध मेवात में सहभागी और क्रियात्मक पद्धति से किया गया था। वहां हिन्दु-मेव के सवाल को इतिहास, संस्कृति और विकास के आयामों से जोडकर देखा गया था। शोध के लिए सदैव संसाधनों का अभाव रहा है, फिर भी समान्तर द्वारा कुछ लघु शोध-अध्ययन किये गये हें। बालिकाओं की शिक्षा पर एक अध्ययन (सी.ए.सी.एल. 2005) की अनुशंसाओं को कई जिलों में सर्वशिक्षा अभियान में शामिल किया गया। इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट नयी दिल्ली के सामाजिक द्वन्द्वों पर एक अध्ययन श्रृंखला में समान्तर शामिल रहा। रजमेरू-कासा के लिए उदयपुर के झाडौल में मनरेगा में समुदाय की भूमिका पर एक अध्ययन किया गया।
समान्तर ने बच्चों को भी शोध की प्रक्रियाओं में जोडा है। समुदाय में वनस्पति, बीमारी, नशे जैसी समस्याओं और बालक व महिलाओं के कामों पर बच्चों ने दिलचस्प अध्ययन किये हैं। एक-दो जगह तो बच्चों ने अपने समुदाय के इतिहास को चीन्हने की कोशिश की है।
समान्तर ने दूसरे संगठन/संख्याओं के लिए प्रशिक्षण व क्षमता वर्धन कार्यक्रम भी किये हैं। राजीव गांधी फाउन्डेशन ने छत्तीसगढ़ के कोटा (बिलासपुर) और उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में स्थित संख्याओं के लिए समान्तर से प्रशिक्षण आयोजित कराये। न्यू एजुकेशन ग्रुप (NEG-FIRE) ने भी ऐसी ही प्रशिक्षण कार्यशालाओं में समान्तर की संदर्भ सेवाएं ली हैं। बल्कि बूंदी जिले के तालेडा में खनन् क्षेत्रा में संचालित न्यू एजुकेशन ग्रुप की एक शिक्षा परियोजना के लिए समान्तर ने दीर्घकालिक (अप्रैल 2009- मार्च, 2013) क्षमतावर्धन सहयोग प्रदान किया है। समान्तर कई तरह से ऐसी सेवाएं देता रहा है जिसमें उदाहरणार्थ शिक्षा के अधिकार पर यूनीसेफ के स्टाफ आमुखीकरण से लेकर पुलिस अकादमी में प्रतिवेदन लेखन पर सत्रों का उल्लेख किया जा सकता है।
समान्तर ने अपनी शुरूआत एक सांस्कृतिक मंच से की थी जो विचार-गोष्ठियों और संवाद के आयोजन करता था। जैसाकि कहा गया समान्तर की रणनीति शीर्ष और जमीनी स्तर पर द्वन्द्वात्मक अन्तक्रिया करने की है। इसलिए समान्तर विचार गोष्ठियों और विमर्श के आयोजन लगातार करता रहा है। एक दशक में इस सिलसिले में कोई अंतराल नहीं आया। इन आयोजनों में देश के कई ख्यात विद्वानों ने शिरकत की है।
समान्तर की ओर से स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के मानव अधिकार संगठनों और नेटवर्कों में सक्रिय हिस्सेदारी की जाती है। इसने हमें सतत् रूप से समृद्ध और प्रेरित किया है। अकादमी और विश्वविद्यालयों से भी समान्तर का कम ही सही एक सम्बन्ध और सहकार रहा है।
एक संस्कृति पत्रिका या बुलेटिन का प्रकाशन समान्तर के शुरूआती उद्देश्य में शामिल था। शुरू में अमन (दिल्ली) के सहयोग से संस्कृति पर ‘दिशाबोध’ पत्रिका निकाली गयी। तकनीकी कारणों से हमें यह शीर्षक छोडना पडा। इस बीच संसाधन भी कम हुए। तब एक सांस्कृतिक बुलेटिन के तौर पर ‘मीमांसा’ को शुरू किया गया जिसका प्रकाशन विलंबित गति से जारी है। ‘मीमांसा’ ने समान्तर के ध्येय के अनुरूप सबालटर्न समुदायों के सांस्कृतिक सवालों को उठाया हैं। इसके अन्तक्रियामूलक और विमर्शात्मक स्वरूप की सराहना की गयी है। इसके इतर भी हमने अपने काम के दस्तावेजीकरण का एक प्रयास किया है जिसमें समान्तर की एक दशक की यात्रा का एक संक्षिप्त प्रतिवेदन और कुछ पुस्तिकाओं के प्रकाशन शामिल हैं।
समान्तर को आगे की दिशा हाशिये के उन्ही समुदायों पर केन्द्रित है जो सदियों से अलगाव आपदाओं में जी रहे हैं। दुर्भाग्य से जिनकी भाषा और संस्कृति ही नहीं कला और कौशल भी ओझल और विलुप्त होते जा रहे हैं। यह एक चुनौती भरा कार्यभार है जिसके लिए नागरिक समाज के बडे सहकार की दरकार है।
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