भाषान्तर
ताइवान, हांगकांग और म्यांमार इस समय अपनी आजादी को वास्तविकता में बदले की कठिन लड़ाई लड रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि छात्र और युवाओं की इस संघर्ष में अहम् भूमिका है। हमारे कवि- मित्र देवेश पथ सारिया ताइवान में हैं। हमने उनसे आग्रह किया कि वे वहां के युवाओं की कुछ कविताएँ- कहानियां मीमांसा के लिए उपलब्ध करायें। युवाओं को प्रस्तुत करना इसलिए भी कठिन है कि वे अपनी मातृभाषा में लिखते हैं जिससे अनुवाद देवेश के लिए संभव नहीं था। अंग्रेजी में अनूदित होने के लिए युवाओं को लंबा इंतजार करना पड रहा है। फिर भी, देवेश ने यंग शन शुन को खोज निकाला जिनकी कविताएँ मातृभाषा से भी पहले उनकी चित्र- कृतियों के साथ हिन्दी में आ रही है। आभार देवेश इस प्रस्तुति और अनुवाद के लिए, स्वागत यंग शन शुन !
यंग शन शुन इक्कीस साल की हैं पर उनकी कविताएँ उनकी उम्र से कहीं अधिक गूढ़ हैं। यहाँ तत्सम शब्दों से चौंका देना मात्र नहीं है, बल्कि भावों की गहराई है। कुछ विपरीत या असम्बद्ध सन्दर्भों का संयोजन उनकी कविता का एक प्रमुख तत्व है। इन कविताओं में एक रहस्यवाद दिखाई देता है। चूँकि यंग शन शुन एक चित्रकार भी हैं और एब्स्ट्रेक्ट आर्ट उनका पसंदीदा कला क्षेत्र है, तो वैसा ही कुछ उनकी कविताओं में भी परिलक्षित होता है। उनके यहां एक संघर्ष है जो आत्म को बाहरी परिदृश्य से जोड़ता है। आत्मा के बुढ़ाने जैसी बात की उम्मीद आप एक नवयुवा लेखक से नहीं रखते। यह बूढ़ा होना यदि वैचारिक उन्नति की ओर ले जाता है, तो अवश्य ही यह हर उम्र में मनुष्य का साध्य होना चाहिए। दुनिया के इस तरफ़ के हिस्से की कविता में प्रकृति के प्रति संवेदना बड़ी सहज होती है। यंग की कविताएं भी इसकी अपवाद नहीं है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अपने जीवन अनुभवों एवं साहित्यिक यात्रा में विकास के साथ भविष्य में यह कवयित्री अपनी कविता के तंतुओं का बेहतर एवं संतुलित उपयोग करना सीखेगी। इस प्रस्तुति में यंग शन शुन की कविताओं के साथ उनके बनाए चित्र भी दिए जा रहे हैं।
~ देवेश पथ सारिया
यात्रा
हम रोशनी के धागों से एक पर्दा बुनते हैं
हमारे बुढ़ाते दिल डरते हैं ऊष्मा से
धूल भरी खिड़कियों के पीछे
दर्द से भरे लोग यादों को छुपा रहे हैं
क्या यह रेल हमें ले जाएगी
किसी के पास, किसी ठौर, किसी समय?
यदि सब कुछ शुरू होता हो एक ग़लती से
क्या फिर भी आनंद लिया जा सकता है
रास्ते में दृश्यों का ?
हर दिन बोझिल होती जाती है हमारी आत्मा
कमज़ोर पड़ते कवच के साथ
फिर भी यत्नों के दम पर
हम पहुंचते हैं जिस भी नए बंदरगाह
वह पूछती है-
क्या तुम पहचान लोगे मुझे?
मांग और आपूर्ति का चक्र
कोई झूठ बोलकर देखो
और अपने आप फूट पड़ेगा सच
ख़ाली काग़ज़ो से भरी हुई क़लम में
गोल घेरे बनाकर भरी गई हैं दरअसल
लकड़ी और घावों पर आरी चलाकर
दी गई अंदरूनी चोटें
बर्फ़ीला अकेलापन
कूद पड़ा सूर्य में
रो रहा है वायुमंडल
गीला हो रहा है रात का आसमान
एक माचिस पर तीली रगड़ो
और निराशा जलने लगेगी
किंतु इस खामोश धरती पर
मैं बारिश में भीगी हुई सिगरेट हूं
मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं
कि तुम आओ और मुझे रौंद डालो।
अंधे तारों की हज़ारों रातें
गोधूलि बेला की रोशनी पड़ती है
जब एक तितली के पंखों पर
शीतल पहाड़ प्रकट करता है
अपनी कठोर सतह पर बैंगनी ओस
अंदरूनी और बाहरी स्वरूप जहां
एक हो जाते हैं
बस वहीं है अंतिम मुकाम
चकमक में एक दरार
खामोशी को घिसती है
और बह निकलता है ख़ून
तुम्हारी आंखों के अंगारे उड़े
और बन गए
जानवरों के सींगों पर चमक
धुएं की बारीक लकीर
नहीं कर सकती तबाह
भारी-भरकम भविष्य को
फिर भी हमारी कल्पना चली ही जाती है
त्वचा की दीवार के उस पार।
अंग्रेज़ी से अनुवाद: देवेश पथ सारिया
यंग शन शुन
कवि-चित्रकार यंग शन शुन ताइवान की 21 साल की यूनिवर्सिटी स्टूडेंट हैं। वह ताइपेई से संबंध रखती हैं और शिन चू शहर की नेशनल चिंग हुआ यूनिवर्सिटी से ‘कला और डिज़ाइन’ की अंडरग्रेजुएट स्टूडेंट हैं। एक कवि के तौर पर उन्होंने स्कूली जीवन में अनेक पुरस्कार जीते हैं। उनके चित्र ताइवान में अपनी पहचान रहे हैं, किन्तु उनकी कविताएं उनकी मातृभाषा से भी पहले हिंदी में प्रकाशित हुई हैं।
ताइवानी युवा कवि यंग शन शुन की इन कविताओं में कवि हृदय के अन्तर्विरोध सूक्षमता से अभिव्यक्त होते हैं | तीनों कवितायें अपनी बिम्बधर्मिता में प्रकृति और मनुष्य के अन्तर्सम्बन्धों को गहराई से प्रकट करती हैं |ये ताइवानी होते हुये भी हमारे अपने देश-समाज की-सी कवितायें लगती हैं | देवेश पथ सारिया ने अनुवाद भी अच्छा किया है | ये कवितायें साझा करने हेतु मीमांसा का धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी कविताएं। संघर्ष की ऊष्मा से ओतप्रोत। बधाई कवि और अनुवादक को।मीमांसा का आभार।
जवाब देंहटाएं