कृति चर्चा
प्राचार्य एवं प्रशासक रहे डॉ आर.डी सैनी लगभग चालीस वर्षों से साहित्य संसार में सक्रिय हैं । कविता ,उपन्यास एवं कथेतर विधाओं से गुजरते हुए 'किताब' उनकी दसवीं पुस्तक है । 'विचार प्रक्रिया ' और 'संज्ञानात्मक बोध ' का बच्चों में विकास कैसे हो ? इसका व्यावहारिक धरातल पर समाधान यह पुस्तक प्रस्तुत करती है ।
डॉ. ममता चतुर्वेदी प्राचार्य है , जो कि लंबे समय से पठन-पाठन के साथ-साथ शिक्षा के व्यापक सरोकारों से जुड़ी रही हैंं । एक शिक्षिका की दृष्टि से डॉ. आर.डी सैनी की 'किताब' की यह समीक्षा , पाठकों को शिक्षा से जुड़े उन मूलभूत प्रश्नों एवं समस्याओं के समाधान समझने में मदद करेगी , जिनका सफलतापूर्वक सामना लेखक ने स्वयं किया है ।
यह पुस्तक समीक्षा 'किताब' के सभी आयामों को दृष्टिपात करते हुए पाठक को किताब की दहलीज तक ले जाती है ।
एक पुस्तक के रूप में 'कुछ यूं रचती है हमें "किताब", शिक्षा व बाल मनोविज्ञान पर आधारित भाव प्रधान पुस्तक है । इसमें लेखक डॉ आर.डी सैनी ने मानव मूल्य , नैतिकता, कर्तव्य एवं घटनाओं का मार्मिक चित्रण किया है जो मनोविज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है ।
पुस्तक का शीर्षक उद्देश्यपूर्ण एवं सार्थक है । अपनी आत्मकथात्मक कृति को लेखक ने 'पुस्तक' को समर्पित करके एक नई सकारात्मक शुरुआत की है । पुस्तक की भाषा सरल, सुबोध ,मर्मस्पर्शी एवं सारगर्भित है । पुस्तक के मुख्यपृष्ठ पर लिखा शीर्षक ही 'गागर में सागर' लोकोक्ति को चरितार्थ करता है ।सामाजिक संदर्भ में प्रस्तुत कृति में मुख्य पात्र -रामजी (एक विद्यार्थी ) द्वारा लेखक ने पिछड़े ,गरीब, वंचित व अभावग्रस्त विद्यार्थियों की विभिन्न प्रकार की ऐसी समस्याओं को उजागर किया है जो वर्तमान समय में भी प्रासंगिक है । 'रैना मैडम' और 'पद्मा मैडम' जैसे विपरीत प्रभाव वाले चरित्रों के माध्यम से लेखक ने विद्यार्थियों के जीवन में अध्यापकों के व्यवहार के महत्व को प्रतिपादित किया है ।
उन्होंने अध्यापकों व समाज को संदेश दिया है कि कैसे संवेदनशील और असंवेदनशील व्यवहार पर एक विद्यार्थी का भविष्य टिका होता है । कैसे कुछ स्वार्थी शिक्षक 'गुरुसेवा ' के दम पर विद्यार्थियों को बिना पढ़े ही पास कर देते हैं और शिक्षा द्वारा प्राप्त लक्ष्यों की धज्जियां उड़ाते हैं ।
कैसे छोटे और मासूम विद्यार्थियों को विद्यालय परिसर में हिंसात्मक वातावरण में रहना पड़ता है , जिससे उनकी रुचि और सृजनात्मकता बाहर ही नहीं आ पाती ।
हमें समझना होगा कि हिंसा बच्चों में डर भले ही उत्पन्न कर दे लेकिन उनमें शिक्षक एवं अभिभावकों के प्रति प्रेम व सम्मान भाव उत्पन्न नहीं कर सकती । अतः आज संवेदनशील अध्यापकों की महत्ती आवश्यकता है ।
एक पुस्तक के रूप में 'कुछ यूं रचती है हमें "किताब", शिक्षा व बाल मनोविज्ञान पर आधारित भाव प्रधान पुस्तक है । इसमें लेखक डॉ आर.डी सैनी ने मानव मूल्य , नैतिकता, कर्तव्य एवं घटनाओं का मार्मिक चित्रण किया है जो मनोविज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है ।
पुस्तक का शीर्षक उद्देश्यपूर्ण एवं सार्थक है । अपनी आत्मकथात्मक कृति को लेखक ने 'पुस्तक' को समर्पित करके एक नई सकारात्मक शुरुआत की है । पुस्तक की भाषा सरल, सुबोध ,मर्मस्पर्शी एवं सारगर्भित है । पुस्तक के मुख्यपृष्ठ पर लिखा शीर्षक ही 'गागर में सागर' लोकोक्ति को चरितार्थ करता है ।सामाजिक संदर्भ में प्रस्तुत कृति में मुख्य पात्र -रामजी (एक विद्यार्थी ) द्वारा लेखक ने पिछड़े ,गरीब, वंचित व अभावग्रस्त विद्यार्थियों की विभिन्न प्रकार की ऐसी समस्याओं को उजागर किया है जो वर्तमान समय में भी प्रासंगिक है । 'रैना मैडम' और 'पद्मा मैडम' जैसे विपरीत प्रभाव वाले चरित्रों के माध्यम से लेखक ने विद्यार्थियों के जीवन में अध्यापकों के व्यवहार के महत्व को प्रतिपादित किया है ।
उन्होंने अध्यापकों व समाज को संदेश दिया है कि कैसे संवेदनशील और असंवेदनशील व्यवहार पर एक विद्यार्थी का भविष्य टिका होता है । कैसे कुछ स्वार्थी शिक्षक 'गुरुसेवा ' के दम पर विद्यार्थियों को बिना पढ़े ही पास कर देते हैं और शिक्षा द्वारा प्राप्त लक्ष्यों की धज्जियां उड़ाते हैं ।
कैसे छोटे और मासूम विद्यार्थियों को विद्यालय परिसर में हिंसात्मक वातावरण में रहना पड़ता है , जिससे उनकी रुचि और सृजनात्मकता बाहर ही नहीं आ पाती ।
हमें समझना होगा कि हिंसा बच्चों में डर भले ही उत्पन्न कर दे लेकिन उनमें शिक्षक एवं अभिभावकों के प्रति प्रेम व सम्मान भाव उत्पन्न नहीं कर सकती । अतः आज संवेदनशील अध्यापकों की महत्ती आवश्यकता है ।
'प्रभात सर' जैसे शिक्षकों की दरकार समाज को हमेशा रहती है । क्योंकि ऐसे शिक्षक ही बालक में छिपी प्रतिभाओं का विकास कर सकते हैं । विद्यार्थियों को सफलताओं के सर्वोत्तम शिखर तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं ।
लेखक ने समाज को यह संदेश दिया है कि विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षक वर्ग एवं विद्यालय का वातावरण कैसा हो ।
लेखक की कृति आज की शैक्षिक समस्याएं , जैसे- 'ड्रॉपआउट', विद्यार्थियों की संख्या में निरंतर वृद्धि शिक्षक , शिक्षक-शिक्षार्थी के मध्य संबंधों में संवेदनशीलता और मधुरता में कमी , शिक्षार्थियों में अध्ययन के प्रति रुचि व अवधान में गिरावट , विद्यार्थियों का नैराश्य और हताशा में डूब कर अवसाद में आना ही नहीं बल्कि कई बार तो घर से भागना व आत्महत्या कर लेने जैसे दर्दनाक हादसों की निरंतर वृद्घि ।
इसके लिए हमारी दोषपूर्ण शिक्षा नीति एवं मूल्यांकन पद्धति भी काफी हद तक जिम्मेदार है । क्योंकि इनमें सृजनात्मकता , क्रियात्मकता , तार्किकता, नैतिकता तथा आत्मानुभूति एवं आत्माभिव्यक्ति जैसे महत्वपूर्ण लक्ष्यों का अभाव है । इस कारण योग्य छात्र भी कभी-कभी असफल हो जाते हैं तथा घर विद्यालय व समाज द्वारा उपेक्षा व तिरस्कार की मार झेलते हैं ।
पारिवारिक संदर्भ में लेखक ने अभिभावकों को भी यह संदेश दिया है कि, वह अपने घर का वातावरण नीरज, बोझिल एवं भयावह ना बनाएं ।
ऐसा होने से आपका बच्चा आपको ही अपनी समस्या व कष्ट नहीं बताएगा और संकट की घड़ी में बालक को उसका घर ही राहत नहीं पहुंचा पाएगा , परिणाम स्वरूप वह भटक जाएगा । बालकों के स्तर को ध्यान में रखकर ही विद्यालय का चुनाव करना चाहिए । हिंदी मीडियम में पढ़ कर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बच्चे का एडमिशन अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में करा के उसके भविष्य और भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए । अभिभावक बच्चों के संपर्क में रहकर उनके साथ मित्रवत व्यवहार करें ताकि वे उनसे कुछ भी ना छिपाएं और ना ही विपरीत परिस्थितियों में घर से पलायन करने की बात सोच पाएं । अभिभावकों का कर्तव्य है कि अपने बच्चों के विद्यालय से संबंधित न्यूनतम सुविधाओं को जुटाएं एवं उसके विद्यालय जाने की तैयारी इस प्रकार करें कि उसे हंसी का पात्र ना बनना पड़े ।
उन्हें बालकों का मन पढ़ने की भी कोशिश करनी चाहिए ताकि अपने बच्चों की मनोदशा को समझना आसान रहे । घर का वातावरण प्रेमपूर्ण, मित्रवत एवं भयमुक्त रखें क्योंकि घर में बीते बचपन की छाप बच्चे के मन और मस्तिष्क में ताउम्र बनी रहती है । बच्चे के लिए दुनिया में सबसे सुकून की जगह 'घर' ही हो सकता है ,मकान नहीं ।
यह 'टार्जन की वापसी' पुस्तक का चमत्कार ही था ,क्योंकि इसे पढ़कर ही विद्यालय, पढ़ाई, शिक्षकों, पाठ्य पुस्तकों व सहपाठियों से हैरान -परेशान और हताश राम जी के जीवन की दशा और दिशा ही बदल जाती है । पुस्तक का जादू ही था कि घर से बहुत दूर भागने के लिए निकला हुआ राम जी स्वतः घर लौट आता है ।
लेखक ने समाज को यह संदेश दिया है कि विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षक वर्ग एवं विद्यालय का वातावरण कैसा हो ।
लेखक की कृति आज की शैक्षिक समस्याएं , जैसे- 'ड्रॉपआउट', विद्यार्थियों की संख्या में निरंतर वृद्धि शिक्षक , शिक्षक-शिक्षार्थी के मध्य संबंधों में संवेदनशीलता और मधुरता में कमी , शिक्षार्थियों में अध्ययन के प्रति रुचि व अवधान में गिरावट , विद्यार्थियों का नैराश्य और हताशा में डूब कर अवसाद में आना ही नहीं बल्कि कई बार तो घर से भागना व आत्महत्या कर लेने जैसे दर्दनाक हादसों की निरंतर वृद्घि ।
इसके लिए हमारी दोषपूर्ण शिक्षा नीति एवं मूल्यांकन पद्धति भी काफी हद तक जिम्मेदार है । क्योंकि इनमें सृजनात्मकता , क्रियात्मकता , तार्किकता, नैतिकता तथा आत्मानुभूति एवं आत्माभिव्यक्ति जैसे महत्वपूर्ण लक्ष्यों का अभाव है । इस कारण योग्य छात्र भी कभी-कभी असफल हो जाते हैं तथा घर विद्यालय व समाज द्वारा उपेक्षा व तिरस्कार की मार झेलते हैं ।
पारिवारिक संदर्भ में लेखक ने अभिभावकों को भी यह संदेश दिया है कि, वह अपने घर का वातावरण नीरज, बोझिल एवं भयावह ना बनाएं ।
ऐसा होने से आपका बच्चा आपको ही अपनी समस्या व कष्ट नहीं बताएगा और संकट की घड़ी में बालक को उसका घर ही राहत नहीं पहुंचा पाएगा , परिणाम स्वरूप वह भटक जाएगा । बालकों के स्तर को ध्यान में रखकर ही विद्यालय का चुनाव करना चाहिए । हिंदी मीडियम में पढ़ कर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बच्चे का एडमिशन अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में करा के उसके भविष्य और भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए । अभिभावक बच्चों के संपर्क में रहकर उनके साथ मित्रवत व्यवहार करें ताकि वे उनसे कुछ भी ना छिपाएं और ना ही विपरीत परिस्थितियों में घर से पलायन करने की बात सोच पाएं । अभिभावकों का कर्तव्य है कि अपने बच्चों के विद्यालय से संबंधित न्यूनतम सुविधाओं को जुटाएं एवं उसके विद्यालय जाने की तैयारी इस प्रकार करें कि उसे हंसी का पात्र ना बनना पड़े ।
उन्हें बालकों का मन पढ़ने की भी कोशिश करनी चाहिए ताकि अपने बच्चों की मनोदशा को समझना आसान रहे । घर का वातावरण प्रेमपूर्ण, मित्रवत एवं भयमुक्त रखें क्योंकि घर में बीते बचपन की छाप बच्चे के मन और मस्तिष्क में ताउम्र बनी रहती है । बच्चे के लिए दुनिया में सबसे सुकून की जगह 'घर' ही हो सकता है ,मकान नहीं ।
यह 'टार्जन की वापसी' पुस्तक का चमत्कार ही था ,क्योंकि इसे पढ़कर ही विद्यालय, पढ़ाई, शिक्षकों, पाठ्य पुस्तकों व सहपाठियों से हैरान -परेशान और हताश राम जी के जीवन की दशा और दिशा ही बदल जाती है । पुस्तक का जादू ही था कि घर से बहुत दूर भागने के लिए निकला हुआ राम जी स्वतः घर लौट आता है ।
उसकी जिंदगी में कल्पनालोक का दरवाजा इस प्रकार खुल जाता है कि वह ना सिर्फ कहानियां लिखने और सुनाने की क्षमता हासिल करता है बल्कि सर्जनात्मक ऊर्जा से सराबोर होकर इसका विस्फोट लेखन की अभिरुचि के रूप में सृजित करता है । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पुस्तकें पढ़ कर बच्चों में जीवन की कठोर वास्तविकताओं को समझने की सामर्थ्य , उनसे जूझने की शक्ति और निरंतर आगे बढ़ते रहने का आत्मविश्वास बढ़ता है ,जिसके परिणाम स्वरूप वे इच्छित लक्ष्य प्राप्त करते हैं ।संघर्षपूर्ण सफलतम व्यक्तित्व के रूप में लेखक ने स्वयं को 'रामजी' एक विद्यार्थी के रूप में प्रतिष्ठित किया है ।उन्होंने विद्यार्थी द्वारा खुद की खोज ,क्षमता वर्धन और सीखने की स्वतंत्र प्रक्रियाओं पर दृष्टिपात कराते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि इससे एक बालक के व्यक्तित्व का निर्माण कैसे होता है ।
बालक में सीखने, याद करने और उसे संप्रेषित करने की क्षमता किस प्रकार अंकुरित, पल्लवित व विकसित होती है । लेखक ने एक संघर्षपूर्ण विद्यार्थी द्वारा संज्ञानात्मक क्रांति को उद्घाटित किया है ।
लेखक के सर्वगुण संपन्न व्यक्तित्व का ही कमाल है कि, उन्होंने अपनी पुस्तक को शैक्षिक विमर्श की खुली खिड़की के रूप में प्रस्तुत किया है । पुस्तक पाठक को आत्ममंथन और गहन चिंतन को विवश कर देती है ।
बालक में सीखने, याद करने और उसे संप्रेषित करने की क्षमता किस प्रकार अंकुरित, पल्लवित व विकसित होती है । लेखक ने एक संघर्षपूर्ण विद्यार्थी द्वारा संज्ञानात्मक क्रांति को उद्घाटित किया है ।
लेखक के सर्वगुण संपन्न व्यक्तित्व का ही कमाल है कि, उन्होंने अपनी पुस्तक को शैक्षिक विमर्श की खुली खिड़की के रूप में प्रस्तुत किया है । पुस्तक पाठक को आत्ममंथन और गहन चिंतन को विवश कर देती है ।
"कौन सोच सकता है कि वह अबोध, निरीह, हताश ,निराश, हक्का-बक्का और यहां-वहां मारा-मारा फिरने वाला राम जी एक दिन प्रदेश का चेयरमैन (लोक सेवा आयोग ) बनेगा । यह कि उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों को लगभग 200 पुस्तकें उपलब्ध करवाएगा । यह कि वह खुद एक लेखक बनकर इस 'किताब' की रचना करेगा ।।।"
उपयुक्त पंक्तियों द्वारा लेखक ने राम जी के रूप में समाज को यह स्पष्ट किया है कि बालक के बचपन को देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि वह भविष्य में क्या कर पाएगा । मामूली बालक को भी यदि उसके हिस्से की जमीन और आसमान दे दिया जाए तो वह अपनी सफलता के झंडे गाड़ सकता है ।
लेखक की वसीयत के रूप में कृति के अंतिम पृष्ठ पर अंकित वसीयत वास्तव में समाज के लिए वसीयत ही सिद्ध होती है, जिसको हमें समझना है, संजोना है । इसके माध्यम से लेखक ने अपनी 'पुस्तक' को हमारे लिए समर्पित किया है । लेखक वसीयत द्वारा यह आशा करते हैं कि समाज सेवी, लेखक, विद्यालय -प्रशासन, शिक्षक वर्ग, शिक्षाविद् तथा अभिभावक परस्पर सहयोग करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार नवाचार करेंगे , लेखन कार्य करेंगे, जिसके प्रकाश में हमारा दिल, घर और दुनिया की गुणवत्ता और खूबसूरती में चार चांद लगेंगे ।
समीक्षक की दृष्टि से 'पुस्तक' का पुष्कल मूल्यांकन कृति कुछ यूं रखती है हमें किताब लेखन की हर कसौटी पर खरी उतरती है ।अपनी कृति द्वारा लेखक ने स्वयं को लहरों तक ही सीमित न रखकर सागर की गहराइयों को छूने का सफल प्रयास किया है । । यह कृति उनके अनुभवों का सर्जन है जो कि पुस्तक की प्राण वायु भी है । कृति द्वारा लेखक ने विद्यार्थियों एवं शिक्षा से जुड़े सभी लोगों के लिए पुस्तक के महत्व को उजागर किया है । लेखन कार्य से जुड़े शिक्षाविदों से लेखक ने आग्रह किया है कि वे ऐसी रुचिपूर्ण , मूल्यों पर आधारित, मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक साहित्य का सृजन करें , ताकि 'रामजी' जैसे भूले भटके एवं हताश निराश बालकों का जीवन सफल हो सके ।
यह एक विचारणीय प्रश्न है कि यदि राम जी को टार्जन की वापसी पुस्तक ना मिली होती तो उसके जीवन की क्या दशा होती ? बाल अपराधी ?बाल मजदूरी ? अंग-भंग भिखारी या इसी प्रकार का कुछ और ?..आत्महत्या ?... हमारी राय में यह पुस्तक प्रत्येक विद्यालय के पुस्तकालय में होनी चाहिए ताकि शिक्षक और शिक्षार्थी राम जी एवं अन्य शिक्षकों के चरित्र चित्रण द्वारा शिक्षा ग्रहण कर सके । परिणाम स्वरूप रामजी जैसे बालकों का सर्वांगीण विकास हो सके और उन्हें घर, विद्यालय , समाज ,व दुनिया से पलायन ना करना पड़े ।
सारांशतः लेखकीय मनोदशा यह रेखांकित करती है कि -"बालक जब प्रेरणादायी पुस्तक पढ़ता है तो उसका मानसिक क्षितिज विस्तृत होता जाता है ,वह अपने चारों ओर प्रकृति जगत में जाने-अनजाने लोगों, जीवों , पदार्थों स्थानों और अनुभवों से परिचित होता जाता है, उसकी कल्पनाशीलता और सृजनशीलता की उड़ान ऊंची होती जाती है और साथ ही ऐसी पुस्तकों से उसकी भावनात्मक अनुभूतियां उत्तरोत्तर समृद्ध होती जाती है ।
यह पुस्तक अत्यंत प्रेरणादायी, मर्मस्पर्शी एवं सारगर्भित है, जिसे रामजी नाम के बच्चे की सक्सेस स्टोरी कहा जा सकता है ।
यह कृति इस सवाल का जवाब देती है कि एक विद्यार्थी में सीखने, याद रखने और उसे संप्रेषित करने की क्षमता विकसित करने वाली शिक्षा कैसी होनी चाहिए ।
उपयुक्त पंक्तियों द्वारा लेखक ने राम जी के रूप में समाज को यह स्पष्ट किया है कि बालक के बचपन को देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि वह भविष्य में क्या कर पाएगा । मामूली बालक को भी यदि उसके हिस्से की जमीन और आसमान दे दिया जाए तो वह अपनी सफलता के झंडे गाड़ सकता है ।
लेखक की वसीयत के रूप में कृति के अंतिम पृष्ठ पर अंकित वसीयत वास्तव में समाज के लिए वसीयत ही सिद्ध होती है, जिसको हमें समझना है, संजोना है । इसके माध्यम से लेखक ने अपनी 'पुस्तक' को हमारे लिए समर्पित किया है । लेखक वसीयत द्वारा यह आशा करते हैं कि समाज सेवी, लेखक, विद्यालय -प्रशासन, शिक्षक वर्ग, शिक्षाविद् तथा अभिभावक परस्पर सहयोग करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार नवाचार करेंगे , लेखन कार्य करेंगे, जिसके प्रकाश में हमारा दिल, घर और दुनिया की गुणवत्ता और खूबसूरती में चार चांद लगेंगे ।
समीक्षक की दृष्टि से 'पुस्तक' का पुष्कल मूल्यांकन कृति कुछ यूं रखती है हमें किताब लेखन की हर कसौटी पर खरी उतरती है ।अपनी कृति द्वारा लेखक ने स्वयं को लहरों तक ही सीमित न रखकर सागर की गहराइयों को छूने का सफल प्रयास किया है । । यह कृति उनके अनुभवों का सर्जन है जो कि पुस्तक की प्राण वायु भी है । कृति द्वारा लेखक ने विद्यार्थियों एवं शिक्षा से जुड़े सभी लोगों के लिए पुस्तक के महत्व को उजागर किया है । लेखन कार्य से जुड़े शिक्षाविदों से लेखक ने आग्रह किया है कि वे ऐसी रुचिपूर्ण , मूल्यों पर आधारित, मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक साहित्य का सृजन करें , ताकि 'रामजी' जैसे भूले भटके एवं हताश निराश बालकों का जीवन सफल हो सके ।
यह एक विचारणीय प्रश्न है कि यदि राम जी को टार्जन की वापसी पुस्तक ना मिली होती तो उसके जीवन की क्या दशा होती ? बाल अपराधी ?बाल मजदूरी ? अंग-भंग भिखारी या इसी प्रकार का कुछ और ?..आत्महत्या ?... हमारी राय में यह पुस्तक प्रत्येक विद्यालय के पुस्तकालय में होनी चाहिए ताकि शिक्षक और शिक्षार्थी राम जी एवं अन्य शिक्षकों के चरित्र चित्रण द्वारा शिक्षा ग्रहण कर सके । परिणाम स्वरूप रामजी जैसे बालकों का सर्वांगीण विकास हो सके और उन्हें घर, विद्यालय , समाज ,व दुनिया से पलायन ना करना पड़े ।
सारांशतः लेखकीय मनोदशा यह रेखांकित करती है कि -"बालक जब प्रेरणादायी पुस्तक पढ़ता है तो उसका मानसिक क्षितिज विस्तृत होता जाता है ,वह अपने चारों ओर प्रकृति जगत में जाने-अनजाने लोगों, जीवों , पदार्थों स्थानों और अनुभवों से परिचित होता जाता है, उसकी कल्पनाशीलता और सृजनशीलता की उड़ान ऊंची होती जाती है और साथ ही ऐसी पुस्तकों से उसकी भावनात्मक अनुभूतियां उत्तरोत्तर समृद्ध होती जाती है ।
यह पुस्तक अत्यंत प्रेरणादायी, मर्मस्पर्शी एवं सारगर्भित है, जिसे रामजी नाम के बच्चे की सक्सेस स्टोरी कहा जा सकता है ।
यह कृति इस सवाल का जवाब देती है कि एक विद्यार्थी में सीखने, याद रखने और उसे संप्रेषित करने की क्षमता विकसित करने वाली शिक्षा कैसी होनी चाहिए ।
डॉ. ममता चतुर्वेदी
काउंसलर एवं प्राचार्या
काउंसलर एवं प्राचार्या
टी.एस.एन.टी.टी .कॉलेज अजमेर (राजस्थान)
ईमेल आईडी -mamtachaturvedi969@gmail.com
पुस्तक - 'किताब'
लेखक डॉ. आर.डी.सैनी
प्रकाशक -राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी
लेखक डॉ. आर.डी.सैनी
प्रकाशक -राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी
मूल्य -110 ₹
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हटाएंटीचर्स के लिए बहुत उपयोगी पुस्तक है
जवाब देंहटाएंटीचर्स के लिए बहुत उपयोगी पुस्तक है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर समीक्षा वास्तव में संवेदनशील अध्यापक ही छात्रों में पढ़ाई के प्रति रुचि उत्पन्न कर सकता है।
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