संभावना लेखिका मंजुला बिष्ट के पास अत्यंत तरल भाषा एवं सूक्ष्म ऑब्जर्वेशंस हैं ,जो कहानी के कहन को प्रभावी तथा वातावरण को जीवंत बनाते हैं । चरित्रों के मनोविज्ञान की बारीक पकड़ , उनके अंतर्विरोधों को गहराई से रेखांकित करने में सहायक है । लेखिका अपनी इन सभी खूबियों का ' विभाजित अंधेरे' में स्त्री संसार के अंधेरे कोनों के मूक साझाकरण की प्रक्रिया में आए अवरोधों की पड़ताल में बेहद खूबसूरती से उपयोग करती हैं । दूसरे फलक पर यह अस्तित्व के युद्ध की संवेदनहीन भूमि पर मानवीय भावनाओं के अंकुरण के लघु प्रयास की भी कहानी है । साथ ही यह स्त्री मनोभावों के दो अलग-अलग समांतर संसार के बीच की अंतः क्रिया की सीमाओं एवं शक्तियों को भी उजागर करती है । विभाजित अंधेरे मंजु ला बिष्ट वह मई माह की एक ऊबी हुई दुपहरी थी।सूरज आदतन अपनी तासीर बढ़ा रहा था।खुले आसमान तले भावी तीख़ी तपन से बचने के लिए मुझे भी अपना काम निपटाने की जल्दी होने लगी थी।देहली गेट की सब्जी मंडी में रोज़ाना की तरह चहुँ तरफ़ा लोगों की आवाजाही बनी हुई थी।मुझे सब्जी-फल के बाद फूल भी खर
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