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बोनती : मोर्जुम लोयी

कहानी
मोर्जुम लोयी ने अपने उपन्यास- मिनाम - से अपनी खास पहचान बनायी है। उन्होंने पूर्वोत्तर के स्त्री- संघर्षों की वास्तविकता को बडे फलक पर प्रस्तुत किया है। अभी वे अपने गाँव को केन्द्र में रखकर एक औपन्यासिक कृति पर काम कर रही हैं। उसी से एक मार्मिक अंश मीमांसा में दे रहे हैं। इसके जरिए आप मोर्जुम लोयी की संवेदनशील दृष्टि, समर्थ भाषा के साथ एक उद्वेलित करने वाले प्रसंग से रूबरू हो सकते हैं।

बोनती/बोनी/भोनती ये सभी एक अर्थ का द्योतक है। अब बात आती है ये शब्द कहां से आया? या इसका अर्थ क्या है? 
‘भोनती’ असमिया शब्द है जिसका अर्थ होता है छोटी बहन । चूंकि असम अरुणाचल पड़ोसी राज्य है तो यहां के कई शब्द अरुणाचल प्रदेश की बोलियों में सम्मिलित हो गए है और कई बार उच्चारण बदल जाता है और वैसे ही ‘भोनती’ शब्द अरुणाचल में ‘बोनती’ बन गई। 
असम की चाय के बागानों से आदिवासी लड़कियां, असमिया,कुलि-बंगाली आदि, तिराप-चाङलाङ से चाकमा लड़कियां आदि अरुणाचल के घरों में काम करती हुई पाएं जाते है। इन्हीं कामवालियों को यहां बोनती कहा जाता है। ये शब्द इस प्रदेश में इतनी रूढ़ हो गई है कि यहां के लड़कियों को असमिया लोग कभी-कभी भोनती कहकर बुलाने पर ये लोग नाराज हो जाते है। उन्हें लगता है कि वे उन्हें कामवाली समझते है। 
ताकाम के घर में उसकी बीवी और चार बच्चें और उनकी बोनती नीलम रहती है। नीलम पिछले नौ सालों से ताकाम के घर रह रही है। उनके बड़े बेटे का जन्म से लेकर। उस वक्त नीलम मात्र आठ साल की थी। शराबी बाप और बीमार मां अपने पांच बच्चों को पालने में असमर्थ थे इसलिए बड़ी बेटी नीलम को बीस हज़ार में बेच दिया। तब नीलम नासमझ थी। अच्छा-बुरा जो भी हो उसे कोई शिकायत नहीं है। कम से कम यहां दिन में तीनों वक्त खाना मिल जाता है। मालिक के बच्चों की देखभाल करते हुए उसे उनके बचे चिप्स और चॉकलेट भी खाने को मिलता है। हां, मालकिन द्वारा बीच-बीच में पिटा भी जाता है किंतु उसे कोई शिकायत नहीं, पीटते तो उसके शराबी बाप भी थे। नीलम यहां आकर ‘यालम’ के नाम से जाना जाता है। मालिक के बच्चें भी उसे ‘यालम दीदी’ कहकर बुलाते है।
शुरु-शुरु में यालम चोरी कर-करके खाती थी। कभी-कभी अचानक से पुकारा जाने पर गरम मीट के टुकड़ों को तुरंत निकलने पर गले में दर्द, मुंह में जलन और आंखों में आंसू आ जाते थे। वह जितना भी खाते उसका मन नहीं भरता था। कभी घर में मेहमान के आने पर प्लेट में बचे मीट-मछलियों पर यूं टूट पड़ते जैसे जन्मों से भूखी हों। एक बार मालकिन उसने मालकिन को कहते सुना, ये लोग शुरु-शुरु में बहुत खाते है,लेकिन बाद में थक जाते है और सामान्य हो जाता है। और ऐसा हुआ भी। नीलम दोनों को भैया-भाभी कहकर बुलाती थी किंतु वह उन्हें माता-पिता के समान दर्ज़ा देती थी। आजतक उन्होंने पूरी लगन के घर का सब काम करती आई है किंतु आज बात कुछ और है। उसे समझ नहीं आ रहा कि वह करेतो क्या करे? किसे अपनी मन की बात बताए?
उसने भाभी को बताने की सोची। डरते-डरते उसने अपना पग बढ़ाया, किंतु भाभी अपने दोस्तों के साथ बैठकर पत्तें खेल रही थी। उसे देखते ही कहा,- 
“ यालम जा एक कड़क चाय ले आ। “ “जी....।“ कहकर यालम मुड़ गई।
” और हां पकौड़ी भी बना... चार कप चीनी डालकर और दो कप बिना चीनी के।“
यालम बिना कुछ कहे उदास भाव से किचन की ओर चल पड़ी। भाभी हमेशा अपने दोस्तों और पत्ते खेलने में व्यस्त रहती है, तभी तो आज मेरे साथ ये हुआ, सोचकर उसकी आंखों से आंसू तपक पड़ी।
 कांपती हाथों से गैस जलाया, पतीले को चढ़ाया। मन अशांत ।
”यालम, मर गई क्या?....
” आ....आई..ई...”लेकिन ये क्या बर्तन में पानी खत्म हो चुकि थी। तुरन्त पानी डाला और दुबारा चढ़ाया। जल्दी-जल्दी पकौड़ी बनाया और ले आई।
” कहां मर गई थी? ...” 
बिना किसी जवाब के उन्होंने सबको चाय की प्याली दे दी। कमरे में आकर देखा तो बच्चों ने रूम का नक्शा बदल रखा था, उसे समेटा और किचन के कोने में बैठकर रोने लगी। तभी अचानक किसी की आहट सुनकर वह आहट हो गई और तुरंत आंसू पोछकर खड़ी हो गई। देखा तो सोनिया दीदी खड़ी थी। 
“दीदी...? आप कब आई?..”
” अभी..क्या हुआ ? तुम रो रही हो? ...” सोनिया ने कहा और तुरंत उसके मस्तक पर हाथ रखते हुए पूछा-
” तबियत तो ठीक है? किसी ने कुछ कहा?..”
” जी दीदी.. सब ठीक है...।“ यालम ने तुरंत कहा।
” अच्छा चलों कुछ खाने को है?.. जोर की भूख लगी है।...” कहकर सोनिया बर्तनों को उलट-पलटकर देखने लगी...” दीदी कहां है?”
”मैं कुछ बनाती हूं, आप बैठिए। भाभी पीछेवाली कमरे में ताश खेल रही है।“
सोनिया मालकिन की बहन है। वह दिल्ली में दंत चिकित्सक की पढ़ाई कर रही है। सोनिया बचपन से अपने दीदी और जीजा के घर उनके साथ रहकर पढ़ाई की थी। दसवीं के बाद वह हॉस्टल चली गई । वह जब भी आती यालम से दोस्ताना अन्दाज में पेश आती, यालम को सोनिया बहुत पसन्द है। रात के खाने के बाद वह और सोनिया एक साथ सोने लगी। बड़ी बेटी भी आज मौसी के साथ सोयी थी। सोनिया एक पुस्तक लेकर पढ़ने लगी।
” ह्म्म...”
” क्या हुआ यालम कुछ कहना है..” सोनिया ने देखा यालम कुछ परेशान है। 
“ दीदी...आपको एक बात बताना है..”
”हां, बोलो..” सोनिया ने प्यार से कहा।
यालम ने जो बताया वह अविश्वसनीय थी। यालम रोई जा रही है । सोनिया तुरंत उठी ,दीदी अभी भी पत्ते खेलने में व्यस्त थी। 
“ दीदी, रात के ढेढ़ बजे है..।“ 
“ अच्छा , थोड़ी देर और,बस खत्म होनेवाली है। “ उसने कहा और पत्तों को समेटते हुए रखने लगी। सब धीरे-धीरे जाने लगे। 
“ यालम, खाना निकालो।“ उसने चिल्लाया।
” वो सो गई है दीदी, रात के ढेढ़ बजे है, कल सुबह उसे जल्दी उठना है। आपका अपने पति और बच्चों के प्रति भी कुछ ज़िम्मेदारियां है, कब तक दीदी कब तक? “
” अच्छा चलो, तुम्हीं देखो कुछ है क्या, भूख लगी है।“ उसने कहा।
सोनिया ने खाना परोसा । 
“ आपको पता भी है कि घर में क्या हो रहा है?” 
“ क्या हो रहा है?” खाते-खाते पूछा
” यालम प्रेग्नेंट है?” सोनिया ने बिना भूमिका बांधे सपाट स्वर में कहा।
” हे! “ प्लेट छोड़कर खड़ी हो गई।
“ ये लड़की झूठ-मूठ बात करती है, पेट दर्द हुआ होगा उसको बिना सोचे-समझे बोल दिया, पागल”
” वो पागल नहीं है दीदी, ये आप भी जानती हो, स्वयं को प्रेग्नेंट बताना मजाक की बात नहीं होती।“ सोनिया ने आज पहली बार दीदी से ऊंची आवाज में बात की।  
खाना वहीं छोड़ वह वहां से सीधे कमरे में आई जहां यालम सो रही थी। 
“ यालम,उठो।“ हड़बड़ी में यालम को उठाकर पूछा-
” बताओं किसका बच्चा है? लेबर लोग का?” यालम रो पड़ी।
” बस भी करो दीदी..ये कोई तरीका है पूछने का?” सोनिया ने पहली बार अपनी दीदी से इस लहज़े में बात की। बात जब औरत की हक की बात आती है,उसपर हो रहे शोषण की बात आती है तो नहीं देखना चाहिये कि कौन किसका क्या है। यही तो मुकुल दादा ने संस्थान में उन्हें सिखाया था। सोनिया दिल्ली के मुकुल देव की स्वयं सेवी संस्थान से जुड़ी हुई थी। 
“ दीदी माफ करना,परिवार में आपका भी एक ज़िम्मेदारी होती है।रोज़ दोस्तो6 के साथ बैठकर पत्ते खेलना, ऐसा नहीं होता है। बच्चों को कुछ चाहिए तो यालम, मेहमान आए तो यालम, जीजू बाहर से थके-हारे आते है तो पानी का एक गिलास भी आपके हाथ से नसीब नहीं होता, मैंने भी बचपन में देखा, उनका खाना, कपड़े, चाय , हर वो चीज़ जिसकी उन्हें ज़रुरत है वह यालम कर देती है। आपको तो ये भी पता नहीं होता कि आपका पति खाया कि नहीं, आपके बच्चे पेट भर खाया कि नहीं, उन्हें दस्त है, एलर्जी है, बुखार है, सबकुछ यालम देखती है,बिना आपको खबर किए। बुलाने आओ तो भी आप यालम की बात न सुनकर अपने जुआरी दोस्तों के लिए अलग-अलग फरमाईश करती रहती है। पति की भी कुछ ज़रुरतें होती है, इच्छाएं होती है..तभी..तो”
” तभी तो क्या?...क्या ताकाम ने?...ओह..नहीं...यालम, बताओं किसका बच्चा है” पागल शेरनी की तरह दहारने लगी।
” हां..जीजू ने किया...।“ सोनिया ने यालम की जगह जवाब दिया। 
“आह!...।“ सर पकड़कर रो पड़ी। तुरंत उठी और यालम पर हमला करने लगी।
” साली, रण्डी...तुम्हे और कोई नहीं मिला... ?”
”रुको...रुको दी।“ ढाल बनकर खड़ी सोनिया को परे ढकेल वो बार-बार यालम पर हमला कर रही थी। फिर वही धड़ाम से बैठ गई और रोने लगी। शोर सुनकर बेटी यालम को पकड़कर सहमी सी बैठी हुई थी। सोनिया ने दीदी की कंधे पर प्यार से हाथ रखा, वो सोनिया से लिपटकर रोने लगी। 
“आंटी...।“ डरते-डरते यालम ने बताया।
” उस रात आप दोनों तेची आंटी की बेटी की शादी में गए थे, तब मैं बच्चों के साथ सो रही थी आप लोग के कमरे में, आप रात को नहीं आई, पर भईया आ गए, मुझे नहीं पता था कि वह आ गए। रात उन्होंने मेरे साथ जबरदस्ती की, मैं , मना करने पर बहुत मारा। फिर सुबह किचन में खाना बना रही थी तो वहीं जबरदस्ती करने लगी। मुझे धमकी भी दी कि अगर मैं किसी को बताऊं तो मुझे चोरी के इल्जाम में जेल भेज देंगे। वहां पुलिसवाले मुझे बहुत मारेंगे और वे भी मेरे साथ वहीं करेंगे। पुलिसवाले बहुत होंगे और मैं अकेला..बोलो किसके साथ तुम्हें पसन्द है..और भी बहुत कुछ..मैं डर गई थी। लेकिन शाम को आप जब आए तो मैंने बताने की कोशिश की, पर आपने नहीं सुना।  तब से मेरे साथ रोज़ जबरदस्ती कर रहे है।“ कहते-कहते यालम रोने लगी। 
“अब क्या दीदी? दो महीने से ऊपर हो चुकी है।“ सोनिया ने पूछा।
” गिरा दो और क्या?” जल्दी से जवाब दिया। 
“ इतनी आसानी से आपने ये बात कह दी दीदी। ये इतना आसान नहीं हैं। आपको पता भी है? यालम की जान भी जा सकती है।“
सोनिया ने फिर कहा।
” तो क्या, एक बोनती को हम अपना सौतन बना दे?” 
“हां दीदी। जीजू को नीलम से शादी करनी होगी। वैसे भी हमारे समाज में दो-दो, तीन-तीन शादियां जायज है। एक उद्धार आप भी कर दो, यालम घर को सम्भालेंगे पहले की तरह, बस उसके बच्चे को नाजायज न कहने पाए।“ सोनिया ने कुछ सोचकर कहा।
” हरगिज नहीं, एक बोनती मेरा सौतन हो ही नहीं सकती, इसी ने कुछ किया होगा, मर्द चाहिए होके, दूसरा नहीं मिला था क्या, मेरा ही पति को? जिसने तुम्हें बचपन से पाला उसी के घर को तोड़ना चाहती हो?”
” तब मैं पुलिस कम्प्लैन करुंगी, जीजू के खिलाफ...रेप केस।“ सोनिया ने धीरे से कहा। दीदी सिहर गई। बहुत सोचने के बाद उसने कहा-” ताकाम से बात करनी होगी।“
अगले दिन सबने इस बात को ताकाम के सामने रखा। उन्हें लगा ताकाम हिचकिचाएंगे अपनी बीवी और साली के सामने, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
” शादी करने में कोई बुराई नहीं है। जो मैं चुपके करता था वो अब खुलके करुंगा। तुम भी खुलके ताश खेलो।“ 
“ वो हमें भैया-भाभी मानते है।“
” पर मैं नहीं मानता, बुलाने से क्या होता है? मैं तो सोनिया से भी शादी करने के लिए तैयार हूं।“
उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी। तीनों स्त्रियों की आंखों से दो बूंद आंसू छलक आई। 
नीलम अब ताकाम की बीवी थी, अब उसपर और ज़ुल्म  लगी। इस बात से अंजान सोनिया खुशी-खुशी कॉलेज चली गई। पहले वह इस घर में सिर्फ काम करती थी, अब मार, तिरस्कार भी झेल रही थी। पड़ोसियों को रोज़ रात को यालम की रोने की आवाज़ आती थी, कभी ताकाम तो कभी उसकी बीवी द्वारा पीटा जाने का दर्द वो सह रही थी। अब यालम बहुत कमजोर हो चली थी। क्यूं न हो, उसे वह नहीं मिल रही थी तो एक होनेवाली मां के लिए आवश्यक होती है,  आखिर वो है तो बोनती ही। उसने उसी कमजोरी की अवस्था में एक कमजोर बेटे को जन्म दिया, ताकाम की पत्नी ने उसका नाम रखा ‘बोनता’।

मोर्जुम लोयी, देरा नातुङ शासकीय महाविद्यालय, ईटानगर से स्नातक तथा राजीव गाँधी विश्वविद्यालय दोईमुख से पोस्ट ग्रेजुएट, लोक साहित्य में विशेष रूचि। वर्तमान में हिंदी विभाग, बिनी याँगा शासकीय महिला महाविद्यालय, लेखि नहारलगुन में बतौर सहायक प्राध्यापक सेवारत। अभी तक दो पुस्तके प्रकाशित -
(क) मिनाम - एक आदिवासी स्त्री की संघर्ष कथा ( उपन्यास) 
(ख)  ननम पोनू - गालो जनजाति के लोकगीत संगह
देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से आलेख एवं कविताएँ प्रकाशरत।
2014 में पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी द्वारा सम्मानित




टिप्पणियाँ

  1. बहुत मार्मिक अंश उध्दृत किया है आपने मर्जुम लोयी के उपन्यास का | बोनती यालम के साथ बीती हुई घटना भीतर तक बेंध जाती है | कामवाली बाई के रूप में बोनती का अर्थ अपभ्रंश होना वाक़ई उद्वेलित करता है | बोनता के रूप में हमारे इधर भी ढाबों पर काम करने वाले और घरेलू नौकरों को छोटू कहा जाता है जिसमें उनका मूल लगभग विस्मृत हो जाता है |
    मीमांसा को यह उपन्यास अंश पढ़वाने हेतु साधुवाद |

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  2. समाज के एक सच पर उंगली रखती बेहद संवेदनशील और खूबसूरत कहानी।

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  3. इस पुस्तक को और पढ़ना चाहती हूं। कृपया इस कहानी को पूरी प्रकाशित करें।🙏🙏🙏🙏

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  मराठी के ख्यात लेखक जयवंत दलवी का एक प्रसिद्ध उपन्यास है जो हिन्दी में घुन लगी बस्तियाँ शीर्षक से अनूदित होकर आया था। अभी मुझे इसके अनुवादक का नाम याद नहीं आ रहा लेकिन मुम्बई की झुग्गी बस्तियों की पृष्ठभूमि पर आधारित कथा के बंबइया हिन्दी के संवाद अभी भी भूले नहीं है। बाद में रवीन्द्र धर्मराज ने इस पर फिल्म बनायी- चक्र, जो तमाम अवार्ड पाने के बावजूद चर्चा में स्मिता पाटिल के स्नान दृश्य को लेकर ही रही। बाजारू मीडिया ने फिल्म द्वारा उठाये एक ज्वलंत मुद्दे को नेपथ्य में धकेल दिया। पता नहीं क्यों मुझे उस फिल्म की तुलना में उपन्यास ही बेहतर लगता रहा है। तभी से मैं हिन्दी में शहरी झुग्गी बस्तियों पर आधारित लेखन की टोह में रहा हूं। किन्तु पहले तो ज्यादा कुछ मिला नहीं और मुझे जो मिला, वह अन्तर्वस्तु व ट्रीटमेंट दोनों के स्तर पर काफी सतही और नकली लगा है। ऐसी चली आ रही निराशा में रजनी मोरवाल के उपन्यास गली हसनपुरा ने गहरी आश्वस्ति दी है। यद्यपि कथानक तो तलछट के जीवन यथार्थ के अनुरूप त्रासद होना ही था। आंकड़ों में न जाकर मैं सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि भारत में शहरी गरीबी एक वृहद और विकराल समस्य

लेखक जी तुम क्या लिखते हो

संस्मरण   हिंदी में अपने तरह के अनोखे लेखक कृष्ण कल्पित का जन्मदिन है । मीमांसा के लिए लेखिका सोनू चौधरी उन्हें याद कर रही हैं , अपनी कैशौर्य स्मृति के साथ । एक युवा लेखक जब अपनी पूर्ववर्ती पीढ़ी के उस लेखक को याद करता है , जिसने उसका अनुराग आरंभिक अवस्था में साहित्य से स्थापित किया हो , तब दरअसल उस लेखक के साथ-साथ अतीत के टुकड़े से लिपटा समय और समाज भी वापस से जीवंत हो उठता है ।      लेखक जी तुम क्या लिखते हो                                             सोनू चौधरी   हर बरस लिली का फूल अपना अलिखित निर्णय सुना देता है, अप्रेल में ही आऊंगा। बारिश के बाद गीली मिट्टी पर तीखी धूप भी अपना कच्चा मन रख देती है।  मानुष की रचनात्मकता भी अपने निश्चित समय पर प्रस्फुटित होती है । कला का हर रूप साधना के जल से सिंचित होता है। संगीत की ढेर सारी लोकप्रिय सिम्फनी सुनने के बाद नव्य गढ़ने का विचार आता है । नये चित्रकार की प्रेरणा स्त्रोत प्रकृति के साथ ही पूर्ववर्ती कलाकारों के यादगार चित्र होते हैं और कलम पकड़ने से पहले किताब थामने वाले हाथ ही सिरजते हैं अप्रतिम रचना । मेरी लेखन यात्रा का यही आधार रहा ,जो