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आधारशिला का हरिपाल त्यागी पर एकाग्र - अंक : एक खांटी परंपरा का मूल्यांकन
■ हेतु भारद्वाज
हाल ही में दिवाकर भट्ट द्वारा संपादित आधारशिला मासिक का प्रसिद्ध चित्रकार तथा लेखक हरिपाल त्यागी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित विशेषांक आया है। आकार में यह विशेषांक दो सौ पृष्ठ से अधिक का है। इस साहसिक कार्य के लिए संपादक श्री दिवाकर भट्ट बधाई के पात्र हैं क्योंकि यह अंक तब आया है जब सभी क्षेत्रों में आर्थिक संकट फैला है । गत लगभग 36 साल से दिवाकर जी इस पत्रिका को नियमित रूप से निकाल रहे हैं । आधारशिला विश्व के करीब 50 देशों में जाती है । हिंदी में शायद ही कोई दूसरी पत्रिका हो जिसका प्रसार प्रचार इतनी बड़ी संख्या में हो । निश्चय ही साहित्य के क्षेत्र में यह एक कीर्तिमान है।
इस भारी भरकम विशेषांक को देखकर सोचने पर विवश होना पड़ता है कि एक सौ पच्चीस रुपए की कीमत वाले अंक को कौन खरीदेगा? वैसे भी श्री हरिपाल त्यागी चमक-चमक वर्ग ( सेलिब्रिटी )के चित्रकार नहीं थे और न वे ऐसे लेखक समुदाय से जुड़े थे जो अपनों को उठाने में आकाश पाताल एक कर देता है। उन पर किसी सरकारी या गैर सरकारी उपक्रम का वरदहस्त भी नहीं था। वे ठेठ ग्रामीण और धूसर जीवन जीने वाले तथा वैसा ही जीवन चित्रित करने वाले कलाकार थे । इस सब से अलग स्वभाव से खरी-खरी कहने वाले जिसके कारण उनसे अच्छे-अच्छे तीस मार खां भी घबराते थे । वस्तुतः वे दिल्ली में भी रहते हुए सादतपुर तथा वहां के फक्कड़ निवासियों के सच्चे प्रतिनिधि थे। ऐसे कलाकार पर इतना महत्वपूर्ण अंक निकालकर संपादक ने एक दुर्लभ कार्य ही किया है।
यह अंक इसलिए भी ध्यान देने लायक है कि हरिपाल त्यागी न तो किसी घराने से जुड़े कलाकार थे न किसी संघ से जुड़े लेखक थे । वे ठेठ देहाती संस्कार वाले रचनाकार थे अतः उनके साथ न ग्लैमर जुड़ा था न किसी प्रकार का आभिजात्य। ऐसे रचनाकार के कृतित्व को रेखांकित करने के लिए 209 पृष्ठ का भारी-भरकम अंक निकालना निश्चय ही एक धूसर परंपरा की स्वीकृति है। इसके लिए विष्णु चंद्र शर्मा , विश्वनाथ त्रिपाठी , मलय , मधुरेश , रमेश उपाध्याय , लीलाधर मंडलोई, विभूति नारायण राय , विद्यासागर नौटियाल, त्रिनेत्र जोशी, सुधीर विद्यार्थी ,सईद शेख , सुधा अरोड़ा, राजाराम भादू , प्रकाश मनु ,हरीश चंद्र पांडे, कमलिनी दत्त ,रामनिहाल गुंजन, शैलेष, देवराज ,रामकुमार कृषक, महेश दर्पण ,सुरेश सलिल ,सैयद शहरोज कमर जैसे एक बड़े लेखक समूह से लिखवाना आसान काम नहीं है । निश्चय ही ऐसा भारी-भरकम कार्य वही कर सकता है जिसे उस परंपरा के महत्व का ध्यान हो, जिसके हरिपाल त्यागी प्रतिनिधि हैं।
इस अंक की सामग्री से गुजरने के बाद ही अहसास होता है कि लेखक और चित्रकार के रूप में हरिपाल त्यागी एक उल्लेखनीय प्रतिभा थे । उन्होंने अपने संघर्ष भरे जीवन में विविधता पूर्ण लेखन तथा अप्रतिम चित्र शैली का संसार रचा । एक खुले दिमाग वाले हरिपाल त्यागी निस्संग भाव से जीवन जीने वाले कलाकार थे । कमलिनी दत्त ने उनके विषय में लिखा है , 'कलाकार का अन्तर- जगत प्रेम , सौंदर्य और प्रकृति के अनंत वैभव को अनुभव करने से सिंचता है । हरिपाल त्यागी जी की कला में दोनों ही पक्ष दिखते हैं।'
सामंती पृष्ठभूमि में जन्मे-पले हरिपाल त्यागी अपने जीवन और व्यवहार में सच्चे कॉमरेड थे तथा उन्होंने सारी परंपरागत रूढ़ियों का विरोध किया । कमर्शियल दुनिया के लाभाश्रित लालच ने उन्हें आकृष्ट नहीं किया। इसलिए वे बाजार की आवश्यकताओं के अनुरूप स्वयं को नहीं डाल पाये । उन्होंने स्वयं को सामान्य जन से जोड़े रखा अतः वह भारतीय ग्रामीण जीवन के सच्चे चितेरे थे।
आधारशिला का यह अंकन हरिपाल त्यागी के बहुआयामी व्यक्तित्व ,उनके रचना संसार तथा उनके कला जगत की सच्ची झांकी प्रस्तुत करता है। इस अंक को आकार देकर एक धूसर परंपरा को सम्मान देने के लिए श्री दिवाकर भट्ट को बारंबार साधुवाद
डॉ. हेतु भारद्वाज
पांच दशक से अधिक समय से साहित्य में सक्रिय। आलोचना,कथा ,कविता, नाटक समेत विविध विधाओं की 20 से अधिक पुस्तक प्रकाशित । संपादन का लंबा अनुभव ।
राजस्थान साहित्य अकादेमी द्वारा 'कथा पुरस्कार' (अब रांगेय राघव पुरस्कार) और विशिष्ट साहित्यकार सम्मान
संपर्क -छावनी , नीमकाथाना
राजस्थान- 332713
बहुत सुंदर विश्लेषण है पत्रिका का।इतने कम शब्दों में पूरे अंक के विषय में लिखते हुए श्री हरिपाल त्यागी के व्यक्तित्व का शानदार चित्रण पाठकों को आधारशिला का यह अंक प्राप्त करने और सहेज कर रखने को प्रेरित करता है।
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