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सत्यनारायण : एक अवांगर्द लेखक



... सत्यनारायण के लेखन में उनका आत्मसंघर्ष प्रतिबिंबित है बल्कि वहाँ जीवन और सृजन एकमेक हो गया है। प्रयोगशीलता उनके लेखन की खूबी है। इसका एक बड़ा प्रमाण यह है कि वे विधाओं की पारंपरिक संरचना का अतिक्रमण कर जाते हैं। उनके वर्णन फन्तासी और रूपक रचते है, हालांकि कहते वे इनके जरिए कथा ही हैं। उनकी गद्य भाषा कविता से बहुत अलहदा नहीं है। यहाँ तक कि वे रिपोर्ताजों में भी किसी भावधारा में बह निकलते हैं। वे ऐसे थोडे से रचनाकारों में हैं जिन्होंने अपनी शैली अर्जित की है और उन्हें इससे पहचाना जा सकता है।

सत्यनारायण ने जीवन के मूलभूत सवालों को सर्जनात्मक चिन्तन के साथ उठाया है। कल्पना वहाँ अनेक रूपाकारों में उतरती है। यह स्वाभाविक है कि उनके अधिकांश पात्र हमें असामान्य प्रतीत होते हैं। वे वक्त के बदलते मिजाज के चलते व्यवस्था में खुद को अनफिट पाते हैं। बेशक, सत्यनारायण काफ्का जैसे महान रचनाकारों से बहुत प्रभावित हैं। उन्होंने उनकी मदद से अपने अंधेरे और कुहासे को समझने की कोशिश की है।

समाज की मूल्य- संरचना में बढते खोखलेपन और संवेदना के क्षरण को वे मार्मिक तरीकों से आंकते हैं। इसलिए उनका यथार्थ भिन्न और एक हद तक तिर्यक है। उनके लेखन की अन्तर्वस्तु सबाल्टर्न ( निम्नवर्गीय लोगों की) दुनिया है। हिन्दी में इस दुनिया के चरित्रों का बाह्म- संघर्ष ही अक्सर हमारे सामने रखा जाता है। सत्य नारायण का अवदान यह है कि उन्होंने इन लोगों के आभ्यन्तर के गुह्य - प्रान्तरों, उनके अंधेरों और ऊबड- खाबड कंदराओं से हमारा साक्षात्कार कराया है।

सत्यनारायण के कविता संकलन अभी यह धरती में दो केन्द्रीय सरोकार लक्षित किये गये- प्रेम और मृत्यु। इन्हें इनकी डायरियों तक विस्तारित किया जा सकता है। लेकिन प्रेम को वे एक जीवन मूल्य बल्कि जीवन की एक अनिवार्य शर्त के रूप में प्रोजेक्ट करते हैं। इसी तरह मृत्यु के साथ जीवन भी विपर्यय के रूप में प्रस्तुत होता है। मृत्यु की काली छाया के कन्ट्रास्ट में जीवन और अधिक आलोकित हो उठता है। यही कारण है कि सतह पर अवसाद और करुणा से आपूरित उनकी रचनाएँ अपने अंतिम प्रभाव में हमें उत्प्रेरित और समृद्ध करती हैं।

अपने लेखन की तरह एक व्यक्ति के रूप में भी सत्यनारायण की प्रकृति थोडी जुदा है। एक अराजक और यायावर प्रतीत होने वाला यह व्यक्ति हद दर्जे का अनुशासित और खूंटे से बंधा है। आपको इनका व्यक्तित्व अन्तर्मुखी भी लग सकता है किन्तु इसके विपरीत ये जीवंत सामाजिक और संवादधर्मी हैं। हमारे समय के लेखकों में सत्यनारायण उन विरले लोगों में हैं जिनके पास दोस्तों की एक समृद्ध दुनिया है। उनके साथ युवा पीढ़ी खुलकर बतियाती है। उन्हें इधर दुर्लभ होती जा रही लोकप्रियता भी हासिल है। मुझे ऐसे लोग मिले हैं जो कथादेश को उल्टी तरफ से पढते थे यानी पढने की शुरूआत सत्यनारायण के स्तंभ यायावर की डायरी से करते थे।

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