खुद के विरोध में अनिल अनलहातु के कविता-संकलन - बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविताएँ- की अधिकांश कविताओं में अन्य साहित्यिक- कला कृतियों/ इतिहास की घटनाओं, पात्रों और स्थानों के प्रसंग और संदर्भ आते हैं। संकलन पर चर्चा से पहले, मुझे लगता है, हाल की एक घटना का संक्षिप्त विवरण देना जरूरी है जो मेरे हिसाब से इस कृति से संदर्भित है। १. यह प्रसंग फेसबुक पर मौजूद है। एक फेसबुक लाइव कार्यक्रम में कवि अदनान कफील दरवेश ने अपने कविता- पाठ के साथ कुछ चर्चा भी की। उन्होंने अपनी वेदना व्यक्त करते हुए कहा कि जब बाबरी मस्जिद का फैसला आया तो हिन्दी ( जगत) में एक अश्लील शांति पसरी हुई थी। जब मस्जिद गिरायी गयी तब ऐसी शांति नहीं थी बल्कि कविता लिखने की होड थी। सबके सामने अपने को सेक्युलर प्रूव करते का चैलेंज था और उस वक्त सभी ने सिद्ध किया कि हिन्दी सेक्युलर भावों पर खड़ी है और हिन्दी सांप्रदायिकता की राजनीति के खिलाफ है। धीरज सैनी ने उनके इस वक्तव्य को सवाल की तरह जारी किया। आनंदस्वरूप वर्मा ने इस पर प्रत्युत्तर में लिखी एक लंबी पोस्ट के जरिए बताया कि कैसे दिल्ली से अनेक रचनाकार- बुद्धिजीवी घटना के तत्काल बाद ल...
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