मार्क्स में मनु ढूंढती माधव राठौड की बीस कहानियों का संकलन है। यह एक बैचेन लेखक का अपने चहुं ओर फैले यथार्थ से रचनात्मक द्वंद है जिसमें वह अपने चयनित पात्रों के हिये की हलचल को दर्ज करता चलता है। अपनी टिप्पणी में माधव राठौड़ नाइजीरियन कवि बेन ओकरी को उद्धृत करते हैं:.... वह आवाज जो हमारे संदेहों, हमारे भय से बात कर सके, और उन सभी अकल्पित आयामों से भी जो न केवल हमें मनुष्य बनाते हैं, बल्कि हमारा होना भी बनाते हैं। मंगती, सांझ की धूसरता और बिकी हुई शामें कहानियाँ उनके इस मंतव्य की काफी ठोस गवाही देती हैं जिनमें वे हाशिये के जीवन से अपनी संलग्नता अभिव्यक्त करते हैं।
इमली फाटक के पार, लाज और क्वार्टर नं.७३ स्थितियों के भिन्न व्यूहों में इसी धरातल का सृजनात्मक विस्तार हैं। इन कहानियों को अन्तर्वस्तु और शिल्प की पारस्परिक अंतर्क्रिया की दृष्टि से भी देखा जा सकता है। माधव की कुछ कहानियों में निश्चित पैटर्न हैं, जैसे मार्क्स में मनु..., उदास यादें, नाच और शुक्रवार... प्रेम और विच्छेद की कहानियाँ हैं। बेशक, यह नये जमाने का प्रेम है और उसकी विफलता अपनी तरह की क्षतियां और रिक्तता छोड जाती है। तो उकताया हुआ दिन, ढलती सांझ की धुंध और खालीपन विवाहेतर संबंध की ओर द्वंद्व पर आधारित हैं। इनकी लोकेल में कुछ फर्क हो सकता है लेकिन मूल निष्पत्ति में ज्यादा अंतर नहीं है। वैसे तो तीन कहानियाँ मातृत्व को लेकर भी हैं। बेजबां दर्द, अधूरा वजूद और अभिशप्त वरदान शीर्षक ये कहानियाँ बच्चे न होने के उस मसले को उठाती हैं जिसे इधर लगभग बिसरा दिया गया है। माधव ने इन्हें संजीदगी और मार्मिकता से उठाया है।
माधव राठौड़ के पास समर्थ भाषा और भावात्मक आवेग हैं। उनकी कहानियों में स्त्रियाँ अपने बोल्ड और एक हद तक प्रबुद्ध रूप में आती हैं। इसकी एक्सट्रीम लाइन को वे तयशुदा दूरियां कहानी में प्रश्नित भी करते हैं जिसमें नायिका प्रमोशन की लिए अपनी देह का यह मानते हुए इस्तेमाल करती है कि इस पर उसका अधिकार है। उनके यहां उभरते और चमकते महानगरीय वेन्यू है जहां भव्यता व्यर्थता और जीवन में समाता मौन आतंक है। ग्रामीण अंचलों में आते अनचाहे बदलाव और सांस्कृतिक नोस्टेल्जिया है।
माधव राठौड़ ने शुरूआत में निर्मल वर्मा के एक लंबे उद्धरण को जगह दी है : हर छोटा लेखक मौलिक होने की चेष्टा करता है, जहां वह अपने पूर्ववर्ती लेखकों से अलग कुछ लिख सके किन्तु जो सही अर्थों में मौलिक होता है, वह हमेशा अपने प्रिय, महान लेखकों की नकल करना चाहता है किन्तु लिखने की घड़ी में वे महान लेखक विनयशील, शालीन मित्रों की तरह उससे विदा ले लेते हैं और उसे कमरे में छोड देते हैं। जो उसका नरक है और मौलिकता का उद्गम स्त्रोत भी...। कहना यह है कि प्रिय और महान लेखकों की कमरे से विदाई अपने आप नहीं हो जाती है। इसके लिए अपने एकान्त, निजता और शैली को अर्जित करना पड़ता है।
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