वे आठवें दशक के आरंभिक साल थे, जब भरतपुर में जनवादी विचार मंच की दो दिवसीय विचार गोष्ठी आयोजित हुई थी। यह जनवादी लेखक संघ के निर्माण की पूर्व- पीठिका थी। कामरेड सव्यसाची की पहल पर आयोजित इस कार्यक्रम में कर्णसिंह चौहान, रमेश उपाध्याय,सुधीश पचौरी और कांतिमोहन जैसे लोग दिल्ली से आये थे। राजस्थान से हरीश भादानी थे। नंद भारद्वाज उस समय मथुरा में थे और एक तरह से आयोजकों में शामिल थे। अलीगढ़ से कुंवरपाल सिंह आये थे।
उस आयोजन की एक और यादगार बात थी, कोटा से आयी सांस्कृतिक टीम। इसमें शिवराम, महेन्द्र नेह और राम भाई मुख्य भूमिकाओं में थे। और इसके अघोषित नेता थे बृजेन्द्र कौशिक। वे सव्यसाची के भी काफी निकट थे और बहस में अक्सर सव्यसाची से उनकी लाइन बहुत मिलती थी। हम लोग कोटा टीम से इतने प्रभावित हुए थे कि जल्दी ही हमने भी अपनी नुक्कड़ नाटक टीम बना ली। जब देश के बाद राजस्थान में भी जलेसं की इकाई गठित हुई तो बृजेन्द्र कौशिक इसमें अहम पद पर थे।
लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद राजस्थान की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी में एक बड़ी टूट हुई । उसमें शिवराम, महेन्द्र नेह और रामभाई भी पार्टी से अलग हो गये। बाद में उन्होंने विकल्प सांस्कृतिक मंच बनाया। जलेसं की गतिविधियां मंद पड गयीं। सव्यसाची की दिलचस्पी भी राजस्थान में उतनी नहीं रही।
बृजेन्द्र कौशिक इस पृष्ठभूमि में नेपथ्य में चले गये। वे मुख्यतः कवि रहे हैं। उनके एक संकलन श्वेत- पत्र की तब कुछ चर्चा हुई थी। एक लंबे अंतराल के बाद पिछले वर्षों उनका फाेन आया। उन्होंने पता पूछा था। और फिर डाक से एक के बाद एक, कई संकलन। सुनने में आया कि भरतपुर में उनके साहित्य पर चर्चा गोष्ठी हुई थी। किन्तु अब जबकि जलेसं काफी सक्रिय है, बृजेन्द्र कौशिक फिर दृश्य से नदारद हैं।
बृजेन्द्र कौशिक के सृजन में तीन गीत संग्रह, दो कविता संकलन, चार गज़ल संग्रह, तीन कहानी संग्रह, हजार दोहों का एक संकलन और छंदबद्ध कविता प्रयोगों के कुछ संचयन शामिल हैं।
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